Saturday, May 8, 2010

ज़िन्दगी में संघर्ष कब बीतता है

ज़िन्दगी में संघर्ष कब बीतता है
इस युद्ध में बस वही जीतता है
जो भले ही गिरे बार बार लगातार
झोंक के खुद को जो फिर खड़ा हो एक बार
कील भी दीवार में ठुकती नहीं एक बार में
जीत पाना बस यूँ ही मुश्किल बड़ा संसार में
जो कुछ भी मिलता है सहज
वह जय नहीं संजोग है
जूझने वाला ही बस होता सुयश के योग्य है
डूब जाता है ये मन तन छोड़ता है साथ
रोड़े लगते सब यहाँ न थामे कोई हाथ
ताने सुने फब्ती सहे और सहे परिहास
पर सुप्त न हो लुप्त न हो कर सके अट्टहास
बस वही है जीतता यह अपरिमित युद्ध
जो हार के कीचड़ में भी सन कर है रहता शुद्ध!!!!!!