Wednesday, May 12, 2010

बुजुर्गो ने कहा है

बुजुर्गो ने कहा है
वक़्त अच्छा हो या बुरा, बदलता जरुर है
किस्मत का सिक्का खोटा हो या खरा
एक न एक दिन चलता जरुर है
किस्मत कभी बदलती नहीं
बस ठिकाना बदलता है
कही काम करती है चुटकी
कही हथौड़ा चलता है
फटी हुई पतलून पर लग सकता है पैबंद
वीराने टापू पर भी 
रहने का हो सकता है प्रबंध
हालातो से समझौते का जुगाड़ जमाना होता है
नसीब ही बुरा है 
ये बेबुनियाद बहाना होता है
कैलेंडर पे छपा हुआ गीता का सार पढो तुम
लो औज़ारो को हाथ
औ खुद अपना आकार गढ़ों तुम
तप जाती जब धरती पूरी
तो घनश्याम पिघलता जरूर है
वक़्त अच्छा हो या बुरा
बदलता जरूर है!

Sunday, May 9, 2010

सूरज यहाँ कुछ ज्यादा ही मेहरबान है

सूरज यहाँ कुछ ज्यादा ही मेहरबान है
इसलिए धरती बंजर है बेजान है
नदिया चौमासे में भी सुखी रहती है
कभी पानी बहता था अब उनमे धुल बहती है
देश में कभी भारत उदय होता है कभी भारत निर्माण होता है
पर हम तो अब भी भूखे नंगे हैं
इनसे जाने किनका कल्याण होता है...
यहाँ खेतो में उगता है सुखा पेट में भूख पलती है
ज़िन्दगी यहाँ रोटी से नहीं
मिड दे मील और नरेगा के आश्वासन से चलती है
गाँव निर्मल है हर घर में शौचालय है
भले ही अस्पताल नहीं न ही विद्यालय है
कब्ज़ और अतिसार से पीड़ित लोग कागज़ी शौचालयों में नहीं
बंजर खेतो में नज़र आते है
कंटीली झाड़ियो से शर्म का पर्दा बनाते है
साल गुज़रे जनसँख्या बढ़ी
पर गाँव वीरान हैं
बूढ़े हैं बच्चे हैं महिलाये हैं
पर न कोई भी नौजवान है
दिल्ली और भोपाल दोनों ही बहुत दूर हैं
किससे पूछे की गर देश बढ़ रहा है
तो हम क्यों मजबूर हैं
क्यों उनकी आवाज़ हर ५ साल में बस चोंगे पे सुनाई देती है
पैरो पे खड़े मुर्दों की सूरत उनको क्यों न दिखाई देती है
शायद उनके नयनो को भाते बस मालाओ के नोट हैं
इस मुल्क में हम इन्सान नहीं, महज़ चुनावी वोट हैं!!!!

Saturday, May 8, 2010

ज़िन्दगी में संघर्ष कब बीतता है

ज़िन्दगी में संघर्ष कब बीतता है
इस युद्ध में बस वही जीतता है
जो भले ही गिरे बार बार लगातार
झोंक के खुद को जो फिर खड़ा हो एक बार
कील भी दीवार में ठुकती नहीं एक बार में
जीत पाना बस यूँ ही मुश्किल बड़ा संसार में
जो कुछ भी मिलता है सहज
वह जय नहीं संजोग है
जूझने वाला ही बस होता सुयश के योग्य है
डूब जाता है ये मन तन छोड़ता है साथ
रोड़े लगते सब यहाँ न थामे कोई हाथ
ताने सुने फब्ती सहे और सहे परिहास
पर सुप्त न हो लुप्त न हो कर सके अट्टहास
बस वही है जीतता यह अपरिमित युद्ध
जो हार के कीचड़ में भी सन कर है रहता शुद्ध!!!!!!

Wednesday, May 5, 2010

जन्मदिन

जन्मदिन
मौका है जश्न का या मातम का,
ये कभी समझ नहीं पाया
जश्न इस बात का की तमाम मुश्किलों,परेशानियो,
अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाने वाली परिस्थितियों के बावजूद
कायम हैं,
या फिर मातम
की मौत की तरफ एक जीना और चढ़ गए...
जन्मदिन ही क्यों,
ज़िन्दगी के मायने भी क्या समझ पाया है कोई???
कभी जैसे गर्मी की छुट्टियों में बिना आरक्षण
ढेरो सामान के साथ
हिन्दुस्तानी रेल में एक जगह से दूसरी जगह का लम्बा सफ़र
कभी जैसे हवाई झूले का उतर चढ़ाव
जिसमे चीख डर से निकलती है या उत्साह से
ये खुद को भी मालूम नहीं होता!!!!!!

Friday, April 30, 2010

उड़ चुकी है नींद अब ख्वाबो के जोर से

उड़ चुकी है नींद अब ख्वाबो के जोर से,
एक आवाज़ आती है जाने किस ओर से!
खिल रही थी धुप अब तक आसमानों में,
घिर गए सहसा ये बदल घनघोर से!
फिर रहे थे लेकर दुनिया बाज़ुओ में हम,
आज पर पड़ने लगे है कमज़ोर से!
चीख को कैसे सुरों का नाम दे दू अब,
महफिले सजती है मरघट के छोर से!
हाथ में अंगार लेकर रौशनी की है,
कुछ मशाले आ रही है उस मोड़ से!

कल जब मैंने अपने दिल से पूछा

कल जब मैंने अपने दिल से पूछा
कि वो तुम्हें इतना प्यार
आखिर करता क्यों है
मेरे दिल ने मुझ पर ही
सवाल दाग दिया
कहने लगा
सूरज क्यों देता है रोशनी
हवाओं में क्यों ज़िन्दगी है
तितली में क्यों रंग हैं होते
ज़माने में क्यों बंदगी है
झरना क्यों बहता रहता है
सागर में क्यों लहरें है
जहाँ भर के दर्द मिटाते
क्यों मासूम चेहरे हैं

तुमने कभी देखा है


तुमने कभी देखा है
अपनी आँखों को
मेरी आँखों के आईने में
वो बोलती हैं, हँसती है
चमकती है
जैसे दूर कहीं अँधेरे में
दो दीये झिलमिला रहे हों
जिनकी चमक से मुझमें उजाला है
मैंने देखा है
वो बाहें खोल बुलाती है
खुद में डूबा लेने को
सागर से भी ज्यादा गहराई में
समां लेने को
तुम्हारी आँखों में क्या है
ये शायद तुम भी नहीं जानती
जानना चाहोगी
आना
देखना कभी अपनी आँखों को
मेरी आँखों के आईने में 

पुरुष व्यग्र-सा अधीर-सा

पुरुष व्यग्र-सा अधीर-सा
चला जा रहा था
एक अनजान दिशा की ओर
रिक्त-रिक्त विश्व था
आवाजें थी सन्नाटे की
सी-सी करती हुई
पर्णहीन वृक्ष, तृणहीन थी धरा
सूरज की किरणें चुभ रही थीं
लथपथ
शरीर स्वेद से, पग रक्त से
चला जा रहा था वह
अवचेतन, अनमयस्क-सा
अंततः दृश्य परिवर्तित हुआ
नवपलाश वृक्षों पर फूटे
धानी हो गयी धरती सारी
कलरव गूँज उठा विहगों का
पुष्पों से झुक-झुक आई दारी
पुरुष ठहर गया आखिर में
चलने लगी बयार, मिटाते सारे विकार
सूरज की भी गर्मी पिघल गयी
सृष्टि मुस्कुराई
पुरुष को नारी मिल गयी 

जब से मैंने तुमको जाना

जब से मैंने तुमको जाना
तब से जाना प्यार क्या है
होती है क्या कमसिन खुशबू
जाना होती बहार क्या है
इस अनजाने निष्ठुर जग में
जैसे तुमसे ही कोमलता आई है
तुमसे ही रोशन हैं सारे नज़ारे
दुनिया ने तुमसे ही ख़ुशी पाई है
मैं तो था जैसे बिखरा-बिखरा
तुमने ही मुझको आकार दिया
तुमने ही जीना सिखलाया
जीने को ज़रूरी प्यार दिया

जग परेशान था

जग परेशान था
वक़्त बेज़ार था
पर मैं खुद में खुश था
दिल मुस्कुराता था
पर मैं बाहर से चुप था
मुस्कुराहट की लाली
बदन पर खिल गयी थी
ऐसी क्या चीज़ थी
मुझको जो मिल गयी थी
ये सोचकर ज़माना हैरान था
रंग फिजाओं में सारे
जैसे घुल गए थे
दुनिया क्यों न जले
मुझको तुम जो मिल गए थे

कल बहुत देर तक की

कल बहुत देर तक की
पत्थरों से बातें हमने
उनमें तुम्हारा ही चेहरा छुपा था
सर झुकाये गये दिल के मंदिर में
दरवाजे पर तुम्हारा नाम खुदा था
मूरत देखे बिना ही लौट आये
ज़रुरत ही महसूस न हुई
कल्पनाओं ने उसे एक कली बना दिया
अनखिली अनछुई 
जिसकी खुशबू से महका हुआ
दिल का गुलिस्तान है
नाम क्या दें इस एहसास को
हैरानी है,
हम इससे अनजान है !

सौ सीढियाँ

सौ सीढियाँ
हूँ चढ़ चुका
पर शीर्ष से अभी भी
बहुत नीचे हूँ
ये तो महज़ एक पड़ाव है
एक चौराहा
जहां से एक नया सफ़र
शुरू होगा
मंज़िल की बात तो छोडो
आगे कौन-सा रास्ता चुनना है
ये भी नहीं मालूम
फिर भी मेरा सफ़र जारी है
और शायद मेरी राह
सही ही है
क्योंकि ज़िन्दगी की मंज़िल
आखिरकार सफ़र ही तो है

मैंने तुम्हे महसूस किया है

मैंने तुम्हे महसूस किया है
तब, जब हवायें शोर करती हैं
या जब हो जाती हैं वो बेजुबां
     मैंने तुम्हे महसूस किया है
जब भीड़ में आ जाती है तन्हाई
या जब गीत गाती हैं खामोशियाँ
     मैंने तुम्हे महसूस किया है
जब शाम के धुंधलके में
रात समाने लगती है
या जब तेज़ हवायों पर सवार
बूंदों का तूफ़ान गुज़र जाता है
     मैंने तुम्हे महसूस किया है
जब दिल खिल जाता है खुशियों से
या जब मन उदासी के पड़ाव पर ठहर जाता है
     मैंने तुम्हे महसूस किया है
सीधे-सीधे कहूँ तो
हर धड़कन, हर साँस में
उस हर एक लम्हे में
जो मैंने जिया है
     मैंने तुम्हे महसूस किया है

जब कभी अपने

जब कभी अपने
अस्तित्व के बारे में सोचता हूँ
तो बस यही पाता हूँ
कि 
चंद अक्षर हैं 
जो आपस में जुड़कर 
मेरी पहचान बन गये हैं
लगभग वैसे ही
जैसे हाड़-माँस के
कुछ पुरज़े आपस में जुड़कर
इंसान बन गये हैं 

कहना था जो तुमसे

कहना था जो तुमसे
वो दबा ही रह गया
बेकरार दिल का फ़साना
छुपा ही रह गया
छोटी-सी ही बात थी
फिर भी बेहद ख़ास थी
तल्खी अपने जोर पे थी 
पर प्याला खाली ही रह गया
तुमने देखा नहीं क्या आँखें 
बेकरार-सी थीं 
महसूस किया न तुमने
साँसें जार-जार-सी थीं
किस तरह से समझाऊँ तुमको
अपने दिल का आलम 
तुमको पाने का ख्वाब
बस
ख्वाब ही रह गया 

ये सच की तुम दूर हो

ये सच की तुम दूर हो
सच नहीं है
मैं हर पल तुम्हें अपनी साँसों के पास पाता हूँ
हाथ बढाऊँ तो छू ही लूं
पर ये सोचकर ठिठक जाता हूँ
छू दूं कहीं तुम मैली न हो जाओ
कुछ फासला ही सही
पर सामने तो हो
सब कुछ लुटा के पाया है तुमको
कहीं बिछड़ न जाओ
पर तुम मुझसे बिछडोगे कैसे
तब मैं खुद से जुदा हो जाऊँगा
धडकनों के बिना शायद कुछ पल मैं जी भी लूं
लेकिन तुम्हारे बिना...
तुम्हारे बिना पल भर में मर जाऊँगा

हे कवि !

हे कवि !
मेरे अक्षरों की
आड़ी तिरछी रेखाओं के बीच
तुम्हारी रचनायें
वैसे ही हैं जैसे
गंदले तालाब में खिली हुई कुमुदनी
मेरे शब्दों के तंग खाको के बीच
तुम्हारी उपस्थिति 
उन्हें व्यापकता प्रदान करती है 
मेरे विचारों में दुराव था
या शायद शब्दों का अभाव था
किन्तु तुम्हारा सानिध्य पा
मैं भी मुखर उठा हूँ
जानता हूँ तुम जैसा नहीं बन सकता
फिर भी प्रयास में जुटा हूँ 

कभी-कभी ऐसा क्यों लगता है

कभी-कभी ऐसा क्यों लगता है
कि किसी अपने के पहलू में
खुद को छुपाकर
दुनिया को भुला दे
भूल जायें साँसें लेना
धडकनों की भी आवाज़ मिटा दें
क्यों लगने लगता है ज़रूरी
जिंदा होने के एहसास के लिया
की ज़िन्दगी का कोई निशाँ न रहे
कुछ पल के लिए
घुल जायें हवाओं में
अपनी कोई पहचान न रहे

उन दिनों के हवा होने पर

उन दिनों के हवा होने पर
जब महफ़िलों में हमारा रसूख था
तन्हाई को भी जीने का
अंदाज़ हमारा क्या खूब था
खुद को ही दो हिस्सों में बात लेते थे
खुद से ही बहस कर वक़्त काट लेते थे
अपनी ही किसी बात पर ठहाका मार कर
आईने के सामने खुद के लिए खुद को संवार कर
अकेले ही ज़िन्दगी क़ी सैर पर निकल जाते थे
हमारी ज़िन्दादिली देख
पत्थरों के दिल भी पिघल जाते थे
तस्वीरों के लिए ख़त लिखते
पढ़कर उन्हें सुनाते थे
ख्यालों क़ी ईंटों से हकीक़त का सपना बनाते थे
वो मीठी-सी ख़ामोशी
व तन्हाई का आलम
अब याद बहुत आता है
ज़िन्दगी का शोर, चारो ओर जमी भीड़ का जोर
आँखों क़ी कोरों में पानी ले आता है 

मैं अब खुद क्या कहूँ

मैं अब खुद क्या कहूँ
कवि !
तुमने तो
मेरे भीतर के सारे भाव चुरा लिए
जिन शब्दों के आभूषण पहना
मैं अपने भावों को सजाना चाहता था
इन्हें तुमने पहले ही
जग के पटल पर चस्पा कर दिया
मैंने जब ये सब देखा
तब अंतर में एक ही प्रश्न उभरा
तुम तो कवि थे
चोर कब से हो गये ?

बीता हुआ लम्हा कभी गुज़रता नहीं है

बीता हुआ लम्हा कभी गुज़रता नहीं है
यादों का सैलाब कभी ठहरता नहीं है
एक लहर-सी उठती है जब तब दिल में
डूबी हुई घड़ियाँ दिखती हैं
गुज़रे कल के साहिल में
एक ठंडी सिहरन सर से पाँव तक दौड़ जाती है
'कल' से आज को, आज से 'कल' को जोड़ जाती है
आखिर हम जो आज हैं
उसकी नींव कल ही तो पड़ी थी
भले ही निकल पड़े हो नई क़ी तलाश में
कल तो ज़िन्दगी पुरानी मंजिल पर ही खड़ी थी
वैसे भी क्या पता
इस दुनिया में कब 'कल' ही 'कल' बन जाये
जिस बाने को समेट कर रख चुके हैं
वो फिर से तन जाये 
इसलिए बीते लम्हों को गुज़रा हुआ मत मानों
यादों में हलचल है उन्हें ठहरा मत जानों
जिससे, गर ज़िदगी फिर से
उसी मोड़ पर ले आये
तो 'कल' जो बिगड़ गया था
'कल' वो सँवर जाये 

माना अभी धुंधला सवेरा है

माना अभी धुंधला सवेरा है
काले बादलों ने सूरज को घेरा है
इससे सूरज बुझा तो नहीं है
आग उसमें बाकी है अभी
किरणों का राग बाकी है अभी
बस,
हवा के एक झोंके क़ी दरकार है
ये तो सब को पता है कि
हवा, बादल कि सबसे पुरानी तकरार है
रुको मत, झुको मत, निराश मत हो
पवन वेग से आता ही होगा
रखो भरोसा वो झोली में अपनी
उपहार प्रकाश का लाता ही होगा

पहला प्यार

पहला प्यार
पड़ोस से चलने लगती है ठंडी-ठंडी बयार
अच्छा लगने लगता है
छत पर खड़े हो करना घंटो इंतज़ार
अचानक ही
सारा मोहल्ला ख़ूबसूरत लगने लगता है
जैसे मोहल्ला न हुआ फूलों का बाग़ हो गया
सुरमई वीणा से निकला, मध्यम राग हो गया
होने लगती है अपने कपड़ों कि, बालों कि फ़िक्र
एक सिरहन-सी दौड़ जाती है बदन में
जो कहीं हो उसका जिक्र
नज़रें खुद को बचाने लगती हैं
दोनों के घरवालों से
दिल भर जाता है उलझनों से
अजीब से सवालों से
हाय,
वो ठंडी आहें, महबूब के घर की राहें
मंजिल की राह बन जाती हैं
और उन राहों पर जो एक बार नज़र जम जाती है
तो भूल जाता है सारा संसार
ऐसा होता है पहला प्यार

Wednesday, April 28, 2010

माँ देख !

माँ देख !
ये ज़माने वाले मुझे तंग करते हैं
अपने उलझन भरे सवालों से
मुझे दंग करते है
बिना वजह इधर-उधर दौडाते हैं
तरह तरह से के गम देते हैं डराते हैं
मैं रातों को सोता नहीं हूँ
दिन में जाग नहीं पाता
हर रास्ते में अकेला चलता हूँ
कोई साथ नहीं आता
देखो तो,
पाँव में छाले पड़ गये हैं
कोई मरहम नहीं लगाता
मुझे गर छींक भी आ जाती
तो तू परेशान हो जाती थी
तरह-तरह दवाएँ देती
अपने पहलू में सुलाती थी
भीतर से भी बाहर से भी
तू मुझे साफ़ रखती थी
मैं कहीं खो न जाऊं, इसलिए हमेशा अपने साथ रखती थी
पर अब मैं मैला हो गया हूँ, खो गया हूँ
चेहरे पर धुल, कालिख जम गयी है
तन गीला है गर्म सुर्ख़ पसीने से
अजीब सी गंध आती है खुद के जीने से
अपनी इस हालत के कारण मन आईना देखने से डरता है
और कुछ नहीं अब बस
तेरा आँचल ओढ़कर सोने को जी करता है
मुझे सुला दे, मेरी थकान मिटा दे
मुझे साफ़ कर दे फिर से
दुनिया ने दिए हैं जो निशान
सारे मिटा दे

लरजते होंठों से

लरजते होंठों से
तुमने जब भी कुछ कहा
वो अफसाना
ज़िन्दगी का फलसफा बन गया
जैसे
ईंट-ईंट जुड़कर ईमारत बनती है
लफ्ज़-लफ्ज़ गढ़कर इबारत बनती है
तुम्हारे एहसास ने
वैसे ही
मेरी बदहाल शख्सियत को
एक भरपूर आकार दे दिया
एक पनाह को अब तक
भटकता था यहाँ वहां
साए में आ तुम्हारे
बदन आराम पा गया
एक बूँद को तरसती थी वो तल्ख़ रूह जो
तर कर दे जो जहाँ को
उसे वो प्यार दे दिया

Monday, April 26, 2010

अनवरत

अनवरत
सूरज का आना
रोशनी फैलाना
अनवरत
चाँद का चमकना
तारों का दमकना
अनवरत
पवन का बहाव
अपनों से मन का जुड़ाव
अनवरत
धरती का घूमना
लहरों का तट को चूमना
प्रकृति का दान है
अनवरत
जीवन का गान है

रात बीती

रात बीती
हुआ सवेरा
सूरज आया लेकर अपना डेरा
डेरे में उसके अजब चीज़ों का कूला
देख उन्हें मन मेरा ख़ुशी से फूला
अंधियारे को मिटाने
छम छम करती आई अंशुला
फूल खिल गए
किरणों को गर्मी से
बुतकदे पिघल गए
खुशबू भरी बयार चलने लगी
सुबह की लाली
सुनहरी रोशनी में ढलने लगी
कल का थका हुआ मुसाफिर
ताज़ा हो मंजिल की तरफ चला
ताजगी की चाबी से
मंजिल का ताला खुला
मंजिल की राह दिखाने आई
अंशुला

कविता दे देती है

कविता दे देती है
खूबसूरती को एक ज़बान
कविता बना देती है
मूक पत्थर को इंसान
कविता छूकर बना देती है
मिटटी को सोना
कविताओं में समा जाते भाव सारे
हँसाना हो या रोना
कविता नहीं
महज शब्दों का प्रसार है
कोमल भावनाओं का
कविता ही एक हथियार है
कविता ही तो है ये जीवन
मृत्यु का भी कविता ही श्रृंगार है
कविता की सीमा नहीं कोई
इसका विस्तार अपार है

माना, नहीं तू दुनिया में

माना, नहीं तू दुनिया में
सबसे हसीं
माना,
तेरा चेहरा नहीं
ज़माने में सबसे ज़हीन
मेरा नहीं कोई इख्तियार है
क्योंकि उनसे नहीं
तुमसे मुझे प्यार है

अक्षर जब शब्द न बन पायें

अक्षर जब शब्द न बन पायें
शब्द जब आपस में ही उलझ जाएँ
जब कोई बात भीतर ही घुट जाए
आँख तब जुबां का काम करती हैं
खिलते मुरझाते रोते मुस्कुराते
दिल की हकीक़त को बयान करती हैं

मेरी आँखों के सामने

मेरी आँखों के सामने
गुज़रा ज़माना बैठा है
जिस्म की सिलवटों से बयाँ होता
एक फ़साना बैठा है
फ़साना
जो कल तक हलचलों से भरा था
हरा था
जो नदिया की कलकल धारा था
जिसने कल को सँवारा था
आज
फर्श पर गिरे पानी-सा हो गया है
बहुत थक गया था
जैसे अब सो गया है
धीरे धीरे उसका फैलाव
सिकुड़ता जा रहा है
उसका असीमित विस्तार
अपने में ही समा रहा है
पर उस ठहरे हुए पानी में अब भी
थोड़ी-सी हलचल बाकी है
होंठों के चौड़ा होने को
बस इतना सा कारण काफी है

जाड़ा यूँ लगता है जैसे

जाड़ा
यूँ लगता है जैसे
हर जगह छा गया है
कँपाता, हड्डियों को गलाता
अंतर में समाया गया है
रिश्तों में भी मौसम होते हैं
बदलते हैं मिजाज़ गुज़रते वक़्त के साथ
कल तक उनमें थी बहार
था प्यार
पर ठंडक ने वहाँ भी घर कर लिया है
अपने दम से
बाहों को सिकुड़ने पर
मजबूर कर दिया है

तमन्नाएं दिल में आती क्यों है

तमन्नाएं दिल में आती क्यों है
आकर बेचारे को सताती क्यों है
रंजो गम कि महफ़िल में
वैसे भी अकेला है
बर्फीली आग से इसे जलाती क्यों है

गुलशन में देख गुल-चहर

गुलशन में देख गुल-चहर
दिल गुल-ए-गुलज़ार हो गया
मैं गुलफाम का अपनी
गुल फिशानी बयाँ करूँ तो करूँ कैसे
वक्त ही कहाँ है
देखो, गुरूब का करार हो गया

Sunday, April 18, 2010

ज़िंदगी गराँ है

ज़िंदगी गराँ है
क्यों गयास माँगते हों
लाखो गजंद फिर भी
ज़िन्दगी है
गज़ीनत है !
काफ़िर न बनो
ऐ मोमिन !
ख्वार न करो ज़िंदगी को
ये परवर दीगार की नेमत है

एक अनुभूति

एक अनुभूति 
अवचेत ह्रदय में संवेदना भरती सी 
एकाएक
आँखों के सामने आ गई 
निधियाँ लुटाती 
श्री बरसाती 
अंतर में छा गई 
हतप्रभ मैं 
चमत्कृत जग था 
कि इतनी सुन्दरता कहाँ छिपी थी 
किस मिट्टी के टीले के नीचे 
ऐसी मुग्धा मणि दबी थी 
उसके तेज से 
विश्व प्रकाशवान हो उठा 
उसे देखने मात्र से ही 
यह जीवन अर्थवान हो उठा   

तुम्हे सताता है डर जुदाई का

तुम्हे सताता है डर जुदाई का
ये की
ज़माना कही कर न दे अलग हमें
पर जरा सोंचो
क्या कभी फूल से खुशबू
सूरज से किरण
गंगा से पवित्रता
राधा से किशन
जुदा हो सकते हैं ?
वक्त के थपेड़ो में खो सकते हैं ?
अरे ! तुम मेरी साँस हो
मैं, तुम
और तुम मैं हो
बिना एक-दूजे के
हमारा वजूद ही कहाँ है
और जब वजूद ही नहीं
तब जुदाई का सवाल ही कहाँ है !

गुर्ग आशनाई के मारे हम

गुर्ग आशनाई के मारे हम
आशियाना क्या बनायेंगे !
चिराग जलने की कोशिश ग़र की
लौ से अपने ही घर जल जायेंगे

हर बड़ी आफ़त की अक्सर

हर बड़ी आफ़त की अक्सर
होती है छोटी शुरुआत
सीधी-सादी चीज़ों को उलझाती
एक छोटी-सी बात
अपने ही खिलाफत में खड़े हो गये
नये रिश्ते पुरानों से बड़े हो गये
पहले तो हँसाती थी अब है रुलाती
एक छोटी सी बात
मंज़िल तक चलने का वादा था साथ में
राह भी कर ली थी तय काफी
बात ही बात में
रास्ता तो दिखाया पहले अब है फंसाती
एक छोटी-सी बात
ख़ुशी के वो सारे पल
जाने कहाँ काफूर हो गयें
दिल के जो करीब थे पहले
जाने क्यों दूर हो गये
पतझड़ के बाग-सी मुरझाती
एक छोटी-सी बात

ज़िन्दगी ने मुझे बुलाया

ज़िन्दगी ने मुझे बुलाया
गले से लगे प्यार जताया
ढेरों रास्ते रख दिये सामने
हर राह में एक ख़ास बात थी
किसी में सुहाना दिन था
किसी में रंगीली रात थी
ज़िन्दगी की ऐसी दिलदारी देख
मैं हैरानी में पड़ गया
अचानक से इतनी खुशियाँ मिल गई
की खुशियों से ही डर गया
ग़म से याराना था मेरा
मुश्किल राहों ने गोद में खिलाया था
सच है उन राहों ने दी मुझे ठोकरें
पर ठोकरें खा सम्हलना भी सिखाया था
कैसे छोड़ता ऐसे अपनों का साथ
कैसे बेच देता 'सच्ची खुशियों' को
अनजाने सपनों के हाथ
ज़िन्दगी से खेला जुआ मैंने
लगा दी 'ज़िन्दगी' दांव में
छोड़ दी खुशियों की धूप
खड़ा रहा ग़मों की छाँव में
ऐ ग़मों,
प्यार से मुझे गले से लगा लो
देखो ये खुशियाँ डरा रही हैं
मुझे अपने साये में छुपा लो

काली अँधेरी रातों में अकेला बैठकर

काली अँधेरी रातों में अकेला बैठकर
तुम्हें याद करता हूँ
अपने रूठे हुए खुदा से
तुमसे मिलने की फ़रियाद करता हूँ
भीग जान चाहता हूँ
तुम्हारी नज़रों की रोशनी से
तुम नहीं हो तो ये आलम है
जलन महसूस होती है चाँदनी से
आ जाओ मेरे दामन में देखो
तुम्हारे लिये एक आशियाँ बनाया है
अपने जिगर का लहू देकर
उसके फूलों को सींचा है सजाया है

यूँ ही तुमसे मुलाक़ात हुई

यूँ ही तुमसे मुलाक़ात हुई
बस थोड़ी सी ही बात हुई
जाने क्यों तलाश की शुरुआत हुई
तुममे सपनों वाले साथी की
जाने तुममे क्या ख़ास दिखा
तनहा दिल के कोई पास दिखा
एक मुद्दत से मन प्यासा था
तुमने ले ली जगह है साक़ी की
सोचो तो क्या ये जादू है
मुर्दा दिल आज बेक़ाबू है
दीपक, भरा तेल से, था बेक़ाबू पड़ा
तुमने कर दी कमी पूरी बाती की

कहीं दूर से तुम बुलाती हो मुझे

कहीं दूर से तुम बुलाती हो मुझे
आकर के सपनों में
रातों को जगती हो मुझे
कभी एक खनकती आहात
कभी एक चमकती-सी झलक
आ जाओ न सामने
क्यों सताती हो मुझे
ख्वाबों में भी अब तक ठीक से
देखा नहीं तुमको
अभी तक बिखरी-बिखरी है तस्वीर तुम्हारी
दीदार का इंतज़ार कर-कर थक गया हूँ
नज़रे-इनायत कर दो
राहों में बिछी हैं नज़रें बेचारी
अच्छा चलो ये तो बताओ
क्या तुमको भी मुझसे प्यार है
मुझसे मिलने के लिये
क्या तुम्हारा दिल भी बेक़रार है
....क्यों पूछता हूँ ये सब
जब तुम हो नहीं कहीं
कल्पना से बात करने के
कोई मायने नहीं
ग़र हो तो बोलो सामने
क्यों आती नहीं मेरे
कोई तो तुम जवाब दो यों चुप नहीं रहो
दिल को ज़रा सुकून दो
तोड़ो मेरी उलझनों के घेरे

दोस्तों के कहकहों के बीच

दोस्तों के कहकहों के बीच
जब कभी तुम्हारा चर्चा आता है
तो अचानक से दिल में एक नफ़ीर बजती है
बातचीत के सिलसिलों में
मशगूल होते हैं वो
और मेरे बुतकदे में
तुम्हारी तस्वीर चमकती है
अचानक ही महफ़िल में होकर भी मैं
अपना एक अलग आशियाँ बना लेता हूँ
रोशन करने बाबत उसको
तुम्हारी यादों का दिया जला लेता हूँ
मेरे दोस्त कसते हैं फ़िकरे
उन्हें पता नहीं चलता कि मैं
सोता हूँ या जगता हूँ
उन फ़िकरों से बचने के लिए ही मैं
महफ़िल में तुम्हारे चर्चे से बचता हूँ

आज दिल में दिन भर

आज दिल में दिन भर
तुम्हारा ही ख़याल रहा
मन में उमड़ता-घुमड़ता
तुम्हारा ही एक सवाल रहा
खोकर के कुछ पाया तुमको
या पाकर के खो डाला
क्या कहूं
कि फूटी है किस्मत मेरी
या कि, मैं हूँ किस्मतवाला
मैं 'ख्वाबों में' भी 'ख्वाबों में'
तुमको ही देखा करता हूँ
तुम हो जाओ न दूर कहीं
इसलिए जागने से डरता हूँ

कल रात को बरसा था पानी

कल रात को बरसा था पानी
भीगी हुई सुबह है
ख्वाब में तो तुम आये ही थे
अब खिलवत में भी आ जाओ
एक मुद्दत गुज़र गई है
फिर अब ये दिल क्यों मचलता है
तुम प्यार से छूकर के आँखों से
इस पागल को बहला जाओ
गूंजते हैं कानों में जाने क्यों
लफ्ज़ जो निकले थे होंठों से तुम्हारे
आओ, आकर उन लफ़्ज़ों को
गाकर गीत बना जाओ
रूठा है मेरा खुदा मुझसे
अब दिन नहीं कटते हैं मुहर्रम के
आओ, सिज़दा सिखा इस काफ़िर को
उसके रमजान की नजामत कर जाओ

खेलते थे साथ जब हम, तुम हमेशा मार खाते

खेलते थे साथ जब हम, तुम हमेशा मार खाते
जीतता था मैं हमेशा और तुम हार जाते
मार खा और हार कर जब आँखों से आंसू तुम बहाते
डर कर उन्हें मैं पोंछता था
खेलते लड़ते झगड़ते हम बड़े होते गये
हर झड़प के बाद फिर से मिलकर खड़े होते गये
जब कभी थे दूर जाते देते तोहफे एक दुसरे को
चहक जाते पाकर एक मीठी गोली भी
ये याद आता है हमेशा
तुम विचारों से बड़े थे तुम बड़े हो गये जल्दी
मैं रोज उलझन नई लेकर था तुम्हारे पास आता
प्यार से सुलझाते उन्हें तुम
ये याद आता है हमेशा
होता कभी मायूस मैं तो खोज लाते थे ख़ुशी जाने कहाँ से
प्रथमतः परिचय तुम्हीं ने था कराया प्रेम के कोमल जहाँ से
प्यार की बारिश में तुमने फिर तो मुझको यों भिगोया
मैं अब तलक न सूख पाया
ये याद आता है हमेशा

कानों को बहरा करते इस शोर से

कानों को बहरा करते इस शोर से
अब जी भर गया है
तुम कह दो चंद लफ्ज़ तो
कहानी बन जाये
करतब हर पल नये होते हैं
फिर भी उदास है दुनिया
बस एक नज़र जो देख लो
करतब ज़माने के तुम
तो ये दुनिया दीवानी बन जाये
हर नये पल में दुनिया
दर्दों का घर बन रही है
छू दो इसे हाथों से अपने
ये फिर इ पुराणी बन जाये
तनहा गुज़र रही है
हर शाम ज़िन्दगी की
आ जाओ तुम्हारी खुशबू से
ये शाम सुहानी बन जाये

कमल की कोमलता

कमल की कोमलता
गंगाजल की पवित्रता
सूर्य का तेज
चन्द्रमा की शीतलता
नदी का प्रवाह
पवन का बहाव
रजनीगंधा की सुगंध
माँ की ममता
नवजात बच्चे की मासूमियत
गाय की सरलता
हिरण की चपलता
वट वृक्ष की स्थिरता
इन सबको मिला कर
एक मूरत बनी
और जब उसमें
मेरे प्राण डाले गए
तब तुम बनी !

सोचता हूँ कैसा वो सफ़र होगा

सोचता हूँ कैसा वो सफ़र होगा
एक लम्बी सी डगर होगी
और तू मेरा हमसफ़र होगा
पथरीला रास्ता
बिछ जायेगा कमसिन फूलों से
तेरी मोहब्बत का
जादुई ये असर होगा
तन्हाई लगेगी बदलने महफ़िलों में
खुशियों का नूर तुझको नज़र होगा
रहेंगे एक-दूजे की बाहों में
ता-उम्र हम-तुम
हर लम्हा ज़िन्दगी का अपनी
यूं ही प्यार से भीगा हुआ बसर होगा

कितना कोमल एहसास है तुम्हारा

कितना कोमल एहसास है तुम्हारा
इसका एहसास तब होता है
जब तुम पास नहीं होती
तब जीवन की सारी कठोरता 
विकराल रूप ले सामने आती है
जिसका अँधियारा इतना भयंकर
कि उसमें दृष्टि शून्य हो जाती है 
तुम्हारा महत्त्व 
तुम्हारे न होने पर ही ज्ञात होता है
जब तुम समीप होती हो
मैं स्थिर होता हूँ
विषमताएँ जितनी भी बढ़ जायें 
मैं साहस न खोता हूँ 
तुम्हारे दूर जाते ही 
मैं जैसे असहाय हो जाता हूँ
बाधाएं मुझे अधीर बना देती हैं
मेरा शक्ति पुंज बुझ जाता है
मेरा तेज मंद पड़ जाता है
तुम मेरी अभयता का स्त्रोत हो
प्रेम और दृढ विश्वास से
कर देती मुझे ओतप्रोत हो
अतः जब भी युद्ध की घड़ी आये
प्रिय! अपने हाथों में मुझे
तुम्हारा हाथ चाहिये 
जीवन की इस लम्बी बीहड़ यात्रा में
संगिनी! मुझे तुम्हारा साथ चाहिये 

सृजन अभी होने को था

सृजन अभी होने को था
की प्रलय प्रखर हो बरस गया
जिसने सागर को जन्म दिया
खुद दो बूंदों को तरस गया
प्रकृति नियम से वशीभूत है
हर उदभव पर विनाश छिपा
हर जीवन के मनस पटल पर
है मृत्यु का श्लोक लिखा
यदि जन्म लिया तो सृजन करो
इस धरती में श्रृंगार भरो
पीड़ा से प्राण निकलते हैं
इस धरती के, सब त्रास हरो
है समय बहुत ही अल्प
कल्प का तरु न सदा हरा रहता
जिसने क्षण, कण का मान न माना
उसका भाग्य न कभी खरा रहता

तेरी चमकती हुई आँखों में मुझे

तेरी चमकती हुई आँखों में मुझे
एक धुंधली-सी तस्वीर नज़र आती है
देखे हैं रातों को जगकर जो मैंने
उन ख्वाबों की ताबीर नज़र आती है
जब भी उलझता हूँ कहीं
और राह कोई मिलती नहीं
हर उलझनों से निकलने की
तदबीर नज़र आती है
गिरने को होता हूँ खा के ठोकरें
जब चोट लगती है मुझे
हर ठोकरें सम्हाल ले
वो जंजीर नज़र आती है
फिरता हूँ जब अंधेरों में
खो जाते सारे रास्ते
तेर दमकते नूर में
मेरी तकदीर नज़र आती है
उठते हैं जब कदम गलत
ईमान से नाता जब टूटता
तेरी टेढ़ी भौंहों सी तलवार
सीने को जो दे चीर, नज़र आती है
लड़ने का मुझमें जो हौसला
हसरत है जो ये जीत की
इस ताक़त के पीछे मुझको तो
तेरी खुशबू से भरी हुई समीर नज़र आती है

रंग गया हर कोई आज मस्ती के रंग में

रंग गया हर कोई आज मस्ती के रंग में
बदल गयी चालें सबकी, रमे सब अपने ही ढंग में
कल थी जली बुराई आज अच्छाई कि धूम है
निखरे निखरे लगते सारे चेहरे मासूम हैं
बसंती हवा झूम-झूम गीत गा रही है
सोंधी-सोंधी खुशबू दिल की हलचल बढ़ा रही हैं
मिट गई सब दूरियाँ बरसता सब दूर प्यार है
मौसम ये ऐसा कि अन्दर बाहर हर जगह बहार है
कहीं महकती भाँग तो कहीं बहकती फाग
मजबूर हो गए झूमने को ऐसा है ये राग
भूलें गंदी राजनीति भूलें गंदे माहौल को
कर दें धराशायी अमन के दुश्मनों की चाल को
आओ इस होली में हम सब प्यार का रंग लगायें
ऐसा जो सदियों तक रिश्तों को रंगीन बनाएं

जाने क्यों सब कुछ रुका हुआ-सा है

जाने क्यों सब कुछ रुका हुआ-सा है
आज आसमान दिखता थोडा झुका झुका सा है
फैला हुआ है हर दिशा में खामोश अँधेरा
खुशियों का दिया शायद बुझा-बुझा-सा है
आज फिर दिल तेरे तसव्वुर को तरसता है
आज फिर दिल तेरी याद में सुलगता-सा है
आज बड़ी देर से सोकर जागा हूँ मैं
आँखों में रात का सपना अब तक कसकता-सा है
सोचा है तेरी याद में हम भी ताजमहल बनायेंगे
तेरी खुशबू से मेरा आलम अब तक महकता-सा है
जाना कहाँ था और कहाँ जा रहा हूँ मैं
मैं या तो फिर ये रस्ता बहकता सा है

Saturday, April 17, 2010

मुझे प्यारा है अकेलापन

मुझे प्यारा है अकेलापन
क्योंकि तब तुम मेरे पास होती हो
लगता है सुहाना अँधेरा
क्योंकि तब तुम मुझे
अपनी रोशनी से भर देती हो
तब तुम्हारी हँसी मेरे कानों में
खनकती है
तुम्हारी खुशबू से मेरी साँसें महकती हैं
अच्छा लगता है जब तुम्हे अपने आप में पाता हूँ
तुम्हे पाकर तुममें ही खो जाता हूँ
दुनिया की सारी खूबसूरती
साड़ी नेमतें
एक तुम्हारे एहसास में ही समा गई हैं
तुम्हारी आँखों की चमक
दर्द-ओ-गम के सारे निशाँ मिटा गई है
अपने अकेलेपन में मैं
तुम्हारी यादों को समेटता हूँ
जब अँधेरा होता है
तब तुम्हारे मासूम चहरे को देखता हूँ
तुमने मेरे हर पल को
ख़ुशी से भर दिया है
हर गम को दूर कर दिया है
पर ऐसा तो अक्सर
पागलों के साथ होता है
शायद तुमने मुझे पागल कर दिया है

ऐ मेरी रुकी हुई कलम बता

ऐ मेरी रुकी हुई कलम बता
तुझे किस विषय की तलाश है
किस चीज की कमी है तुझे
सब कुछ तो तेरे पास है
कहीं दर्द-ओ-गम है छुपा हुआ
कहीं पर ख़ुशी अथास है
कहीं 'अहा' का उदघोष है
कहीं पर निकलती आह है
कहीं प्यार का सागर भरा
फूलों का गुलिस्तान है
काँटें ही काँटें हैं कहीं
नफरत का रेगिस्तान है
कहीं है घृणा बिछी हुई
कोई हास्य से सराबोर है
हर कण में है विषय निहित
कुछ अर्थ तो चारो ओर है
है क्या अजब ये बात फिर भी
बुझती नहीं तेरी प्यास है
ऐ मेरी रुकी हुई कलम बता
तुझे किस विषय की तलाश है

जाने तुमने कह दिया कैसे

जाने तुमने कह दिया कैसे
न मिले तो दोष हमारा होगा
हमारी चाहत के बिना
न अपना गुज़ारा होगा
कैसे समझाएँ तुमको कि
सब कुछ इतना आसान नहीं होता
लोगों के हुजूम का जो ढाँचा है
वह इतना बेजान नहीं होता
सांस भी लो तो खड़े हो जाते हैं सवाल
धडके जो दिल तो मच जाता है बवाल
फिर ये तो दो आत्माओं के मिलने की बात है
न ही अपने ऊपर किसी अपने का हाथ है
फिर कटेगी कैसे वो डगर जिससे
खुद हम ही अनजान हैं
कहना तो ठीक है
करना न आसान है
तुम्हारा भगवान् भी न जाने
क्या अंजाम हमारा होगा
जाने तुमने कह दिया कैसे
न मिले तो दोष हमारा होगा

पास हो तुम दूर भी

पास हो तुम दूर भी
चेहरा रहता है हमेशा आँखों के सामने
पर बढ़ता हूँ जब भी मैं हाथों को थामने
दूरी कभी घटती नहीं
खुशनसीब हूँ मैं मजबूर भी
पास हो तुम दूर भी
सोचा नहीं था ये की आ जायेंगे यहाँ तक
छा जाओगी तुम्हीं बस धरती से आसमाँ तक
पर जाएँ अब किधर कि
राह कोई मिलती नहीं
कुछ बंधन भी हैं दस्तूर भी
पास हो तुम दूर भी

मुसीबत तो चारो तरफ अब है मेरे

मुसीबत तो चारो तरफ अब है मेरे
कोई तो बता दे कहाँ है सहारा
मौजों में बह-बह के मैं थक गया हूँ
नहीं सूझता है कहाँ है किनारा
नहीं दम है मुझमें की अब लड़ सकूँ मैं
की अब तन बदन तो मेरे टूटता है
निराशा ही दिल में तो अब बस रही है
आशा से दामन मेरा छूटता है
बस एक रोशनी की किरण गर मिले तो
रोशन मैं कर दूँ ये सारा नज़ारा
मौजों में बह-बह के मैं थक गया हूँ
नहीं सूझता है कहाँ है किनारा

जब से तुम्हारे नाम के एहसास ने

जब से तुम्हारे नाम के एहसास ने
मेरे दिल में घर कर लिया है
तब से इसने एक अनजानी सी ख़ुशी से
मेरे तन मन को भर दिया है
तुम्हारा मासूमियत में डूबा हुआ चेहरा
मुझे तुम्हारी यादों में डुबा देता है
तुम्हारा वो खूबसूरत मसलफा
मेरे हर गम को भुला देता है
तुम्हारी बातों की वो संजीदगी
मुझे अन्दर तक छू जाती है
तुम्हारी कोमल हँसी की खनक
मुझमें नूर जगा जाती है
क्यों तुमसे मिलने की ललक
दिन ब दिन बढ़ती जा रही है
मेरी हर बात हर ख्याल से
अब बस तुम्हारी ही खुशबू आ रही है
अनजान हूँ इस एहसास को क्या नाम दूं
जब मेरा एहसास ही तुम बन गई हो
कहीं ये प्यार तो नहीं
जो तुम मेरे दिलो दिमाग में जम गई हो

Friday, April 16, 2010

एक जलजला आया

एक जलजला आया
सब कुछ मिटा गया
जो बचा था वो बस मलबा था
लाशें थी
लाशें मकानों की लाशें इंसानों की
लाली चढ़ी थी खून की ज़मीन पर
ज़िन्दगी टंगी थी वक़्त की संगीन पर
लाशों के क्रिया कर्म का वक़्त आया
बचे लोगों ने गड्ढे खोदे आग जलाई
अपना धर्म निभाया
पर कुछ लोग उन्ही गड्ढों में
अपने घरों की नींव धरने लगे
चिता की गरमाहट से
अपने कमरे भरने लगे
क्या हमारा खून इतना ठंडा हो गया है
की उसके उबाल के लिए
चिता की आग ज़रूरी है
भाई को भाई का गला काटने में भी हिचक नहीं
ये मानव के किस गुण की छुरी है

तूफ़ान सरीखी हवाएं

तूफ़ान सरीखी हवाएं
ये नया फरमान ला रही है
मुसलाधार बारिश
क्यों तुम्हारी याद दिला रही है
काफी दिनों से तो ऐसा हुआ न था
तुम्हारी कमी के एहसास ने
अब तक छुआ न था
फिर क्यों ये बदलता मौसम
मुझे बदलता जा रहा है
अपने बहाव में बहाकर मुझे
तुम्हारे पास ला रहा है
ये अनसुलझे अनबुझे सवाल
एक हकीक़त बयान करते हैं
कि मेरे सपने अभी भी तुमसे
जुदा होने के ख़याल से डरते हैं
तुम अब भी मेरी साँसों में समाई हो
अब भी तुम्हारे नग़में
मेरे ख़्वाबों में बसते हैं

आज पहली बारिश ने

आज पहली बारिश ने
अपनी बूंदों से जग को सराबोर कर दिया
गिरते पानी के अनजाने रंग ने
अचानक ही सबको खुद के रंग में रंग दिया
हर तरफ एक सा ही भीगा हुआ माहौल था
हर तरफ नमी थी गिरती बूंदों का उछाल था
हर चीज़ नए रूप में दिखने लगी एक सी
हर भीगे इंसान की सूरत और सीरत
जैसे दिखने लगी नेक सी
पहली बारिश ने हवा में उडती धूल को धो दिया
तवे सी तपती पथरीली ज़मीन को
बौछारों ने सुखद ठंडक में डुबो दिया
पर जाने हमारे दिलों में वो ठंडक कब आएगी
जो हमें इस वतन में अमन से जीना सिखलाएगी
जाने वो बारिश कब आएगी
जो दिलों में जमी गर्द को धो जाएगी
कब तक हम एक दूसरे के खून से नहाते रहेंगे
कब देश से ये नफरत का तूफ़ान जायेगा
जाने कब प्यार लिए सुहाना सावन आएगा

अब मैं जब कभी भी सुकून की तलाश में

अब मैं जब कभी भी सुकून की तलाश में
अपनी आँखें बंद करता हूँ
तो हर बार मेरी हार सामने आकर
मेरे वजूद को चुनौती देने लगती है
हर वो मोड़ जहां मैं चकराया
हर वो राह जहां मैंने ठोकर खायी
एक नश्तर-सी बन
दिल में चुभने लगती है
जीत का ज़ायका कभी पता ही न चला
मन में लगी आग में हरदम ही मैं जला
मेरा हर कयास हर कोशिश
नाकाम होती गई
ग़मगीन अंधेरों की गहराइयों में
मुझे और अन्दर डुबोती गई
अब मैं कहाँ हूँ
ये मुझे क्या, किसी को भी नहीं पता
हर वक़्त ही मुझसे होती रही
कोई न कोई ख़ता
मैं ख़तावार हूँ
अपनी गलतियों की सज़ा पा रहा हूँ
अपनी ही नहीं
अपने वालिद की इज्ज़त भी खा रहा हूँ

आखिरकार वो सपना ही निकला

आखिरकार वो सपना ही निकला
जिसे कल तक मैं सच्चाई समझता था
आज वह टुकड़ों में बिखरा पड़ा है
जिस शीशमहल में कल तक मैं रहता है
वे टुकड़े रह रहकर पैरों में चुभ रहे हैं
पर जाने क्यों दर्द का एहसास नहीं हो रहा है
मेरा सपना टूट चूका है
चाहकर भी इस पर विश्वास नहीं हो रहा है
दिल कह रहा है की जो हुआ जिसे मैंने देखा
वाही एक सपना है, बुरा सपना
सच्चाई ढकी है अब तक ये कि
वो अपना है मेरा अपना
मैं उलझन में हूँ कि
जाऊं किस ओर रुख किधर को करूँ
मन में जलते हुए सवालों के अंगारों को
छिपा किस ओर धरूँ
मुझे खुद भी ये नहीं पता कि
मेरा अगला क्या विचार है
शायद सही वक़्त आने का
अब मुझे इंतज़ार हैं

भले ही इस समय मैं

भले ही इस समय मैं
सिर्फ और सिर्फ तुममें ही खोकर रह गया हूँ
भले ही अभी मैं
तुम्हारी ही चर्चा करता हूँ
भले ही मुझे तुम्हारे अलावा
अभी कोई विषय नहीं मिलता
पर मैं इस सच को झुठला तो नहीं सकता
की दुनिया के कण कण में
एक न एक विषय समाहित है
उन सबसे घिरकर मैं अपने आप को
उनके प्रभाव से अछूता कैसे रख सकता हूँ
इसलिए मैं अब फिर मुड रहा हूँ
पर इस बार तुम्हें साथ लेकर
अबतक उन बीहड़ पथों में
मैं अकेला चलता था
कभी कभी भटक जाता था
अब जब तुम मेरी दिशा-निर्धारण कर रही हो
तब मैं पथ से विमुख कैसे हो सकता हूँ
तुम्हारा साथ पाकर मेरी चार आँखें हो गई हैं
अब मैं हर चीज़ को
और स्पष्ट देख सकता हूँ
तुम्हारा साथ पाकर मेरा व्यक्तित्व
निखर उठा है
तू पारस हो जिसने उसे छूकर
सोना बना दिया है
मैं अधूरा था
तुमने मुझे पूर्णता की ओर बढ़ा दिया है

जैसे-जैसे दिन घटते जा रहे हैं

जैसे-जैसे दिन घटते जा रहे हैं
तुम मेरे करीब और करीब आती जा रही हो
इन बचे हुए पलों का एक एक लम्हा
मैं तुम्हारे तसव्वुर में गुज़ारना चाहता हूँ
मुझे पता है तुम मेरे आस पास नहीं हो
फिर भी मुझे हमेशा तुम्हारी मौजूदगी का
एहसास होता रहता है
कल तुम तो मुझसे दूर हो सकती हो
पर तुम्हारी यादें हमेशा मेरे पास रहेगी
तुमसे दूर जाने से पहले
मैं अपने दिल को
तुम्हारी यादों से इस कदर भर लेना चाहता हूँ
की उसमे किसी और चीज़ के लिए जगह न हो
तुम तुम बस तुम ही उसमें रहो
मेरा हर एक पल तुम्हारा हो
मेरा हर एक ख़याल तुम्हारा हो
मेरे गम मेरी खुशियाँ
सब तुम्हारे सिर्फ तुम्हारे हों

रात हो आई है

रात हो आई है
बाहर मैदान में दूर तक चाँदनी छाई है
मैं तुम्हारे आगोश में लेटा हुआ हूँ
तुम्हारी साँसों की गर्मी मुझे
सर्द हवाओं से छुपा रही है
तुम्हारी आवाज़ कोई मीठा-सा गीत गुनगुना रही है
तुम मेरे बालों में ऊँगलियाँ फिरा रही हो
मेरे बिन बीते लम्हों के किस्से सुना रही हो
तुम्हारे तन की खुशबू
मेरे मन में समाती जा रही है
तुम्हारी चाँदी की घंटियों को मात देने वाली हँसी
अपने प्यार की बारिश में
मुझे भिगाती जा रही है
मैं आँख बंद किये
दुनिया के उस सबसे ख़ूबसूरत चेहरे को निहार रहा हूँ
जो इस वक़्त मेरे सामने है
मेरा रोम-रोम तुम्हारी मौजूदगी के एहसास से
प्रफुल्लित हुआ जा रहा है

सबकुछ एक हकीक़त-सा लगता है
जानता हूँ कि ये एक सपना है
पर आखिरकार ये मेरा अपना है
जानकार भी ये कि यह केवल एक सपना है
नहीं मेरा मन उदास है
क्योंकि इस सपने की हकीक़त पर
मुझे खुद से ज्यादा विश्वास है

Tuesday, April 13, 2010

हाथ में जब तुम्हारा हाथ

हाथ में जब तुम्हारा हाथ
फिर मुझे गम है क्या
रास्ता लंबा ही सही
गुज़र जाएगा

जब मैं अपने कर्तव्य पथ पर चलते चलते

जब मैं अपने कर्तव्य पथ पर चलते चलते
थक जाता हूँ
तब तुम्हारा स्नेहिल आलोक ही
मुझे नई ऊर्जा देता है
जब ऊब की चादर छाने लगती है
तब तुम्हारी चमकती आँखें
एक शबनमी ताजगी लेकर आती है
मैं अपने लक्ष्य की ओर
तुम्हारा हाथ थामकर
तुम्हे ही पाने के लिए बढ़ रहा हूँ
जब तक तुम्हारा हाथ मेरे हाथों में है
तब तक विश्वास है
कि मेरे कदम डगमगायेंगे नहीं
क्योंकि तुम मेरी शक्ति का वो श्रोत हो
जो न केवल मुझे ऊर्जावान बनता है
बल्कि मेरे अन्तः के समस्त
अवसादक भार को भी
सोख लेता है

पता नहीं क्यों

पता नहीं क्यों
अपनी कविताओं में 'तुम' 'तुम' 'तुम' लिखते हुए
मैं उकताता नहीं हूँ
तुम्हारे मुस्कुराते हुए चेहरे को
अपनी आँखों में बसा
मैं अपने हर एक शब्द में
तुम्हे सिर्फ तुम्हे देखता रहता हूँ
तुम, जिसमें दुनियाभर की
मासूमियत, नजाकत और खूबसूरती समाई हुई है
तुम जिसकी खुशबू
मेरे दिल के आँगन में छाई हुई है
तुम्हारे रोशनी बिखेरते चेहरे को देखकर
मैं कैसे ऊब सकता हूँ
तुम मेरी साँसों में बसी हो
मेरी धड़कन में तुम्हारी ही अनुगूंज है
अब अगर मैं अपनी साँसों, अपनी धडकनों से ही
ऊबने लगूंगा
तो जियूँगा कैसे ?

तुम्हारी यादें मेरे दिल से

तुम्हारी यादें मेरे दिल से कुछ जुडी हैं ऐसे
कि मेरी रूह पे एक नाम तेरा बस लिखा हो जैसे

जब कभी मैं तुम्हारी यादों से घिरता हूँ

जब कभी मैं तुम्हारी यादों से घिरता हूँ
तब अपनी रचनाओं में
तुम्हे खोजने लगता हूँ
क्योंकि उनके रेशे रेशे में तुम
समाई हुई हो
उनका हर एक शब्द मुझे
तुम्हारी मौजूदगी का एहसास दिलाता है
मन में तुम्हारी तस्वीर
कुछ इस कदर बनी हुई है
कि उसकी छवि से चाहकर भी
मैं अपनी नज़रें हटा नहीं पाटा
जब जब दिल तुम्हारा साथ पाने को तड़पता है
मैं तुम्हारी उस तस्वीर को देखता हुआ दिलासा देता रहता हूँ
कि तुम सिर्फ और सिर्फ मेरी हो
और मेरा दिल मानता है
कि मैं सच कह रहा हूँ

कभी कभी सोचता हूँ

कभी कभी सोचता हूँ
कि तुमने मुझे क्या से क्या बना दिया है
कल तक मेरी कविताओं का रूप क्या था
और आज क्या है
कल तक मैं अपने चारों ओर नज़रें घुमाता था
पर आज तुममें ही खो कर रह गया हूँ
मेरी रचनाओं का आदि और अंत
तुममें ही सिमटकर रह गया है
तुम ही उनकी प्रेरणा बन गयी हो
मेरी सोचों मेरे ख्यालों में केवल
तुम्हारी ही एक तस्वीर दिखती है
मेरी नज़र हर नज़ारे में
बस तुम्हे खोजती है
समझ नहीं पाता इन सब को क्या नाम दूँ
किस नतीजे पर पहुँचूँ
कि मेरे लिए तुम कौन हो
क्या सिर्फ एक नाम
जो मुझे खुशबू से भर देता है ?

कलेजे में हज़ारों दाग

कलेजे में हज़ारों दाग दिल में हसरतें लाखों
कमाई ले चला हूँ साथ अपनी ज़िन्दगी भर की

जानता नहीं बातों का मेरी

जानता नहीं बातों का मेरी
असर क्या है
जो आते हैं ये
शामो-सहर क्या है
ऊँची ही रही नज़र
ऊँचा ही रहा सर
फिर भी अनजान हूँ
मेरी डगर क्या है

जब मैं अपने चारो ओर पड़े

जब मैं अपने चारो ओर पड़े
अस्त व्यस्त सामान को देखता हूँ
तुम्हारी स्मृतियों से घिर जाता हूँ
अँधेरी खिड़की के उस पार
कहीं दूर से
तुम झाँकने लगती हो
तुम्हारे बिना मेरा चित्त भी
वैसे ही बिखरा पड़ा रहता है
कामना होती है तुम आओ
मेरे बिखरे बालों को संवारो सुलझाओ
गाल पर एक प्यारी चपत लगा
बिखरी किताबों को जमाओ
और मुझमें फिर से जुट जाने कि
प्रेरणा भर जाओ

Monday, April 12, 2010

तुम ही वो एकलौती शख्स हो

तुम ही वो एकलौती शख्स हो
जिससे मैं नफरत करना चाहता हूँ
पर तुम्हारे लिए मेरा प्यार
दिन-ब-दिन गहरा होता जा रहा है
मैं तुम्हे एक बुरा सपना समझ कर
भूल जाना चाहता हूँ
पर हर बार तुम एक हक़ीकत बन कर
मेरे सामने आ जाती हो
तुम मेरी बदनामी का सबब बनी
फिर भी मैं अपना नाम तुमसे जोड़ना चाहता हूँ
मैं तुम्हे अपने दिल से निकाल फेंकना चाहता हूँ
पर तुम्हारी यादें हर दिन मज़बूत होती जा रही है
कैसे मैं समझाऊँ खुद को
कि तुम एक अनदेखा ख्वाब हो
जो कभी पूरा नहीं हो सकता
क्या मैं बताऊँ अपने दिल को
कि तुम्हारे दिल में क्या है
काश तुम कभी समझ पाती कि
कितना मुश्किल होता है
उसे देखकर ये कह देना
कि मैं उसे नहीं जानता
जिसे तुम सबसे ज्यादा चाहते हो

मैं कौन

मैं कौन
एक मुसाफिर या एक ठहरा हुआ सैलाब
ज़िन्दगी के कई मीलों के पत्थरों को
पार करता हुआ
आ पहुंचा यहाँ तक
जहां से ये समझ पाना बहुत मुश्किल है
कि राह कौन सी है सही
मन को कोई और ठौर मिलती नहीं
बस दर्द और दर्द की लहरों से
जूझते ह्युए लड़ता रहा हूँ
पर अब दम चुकता जा रहा है
मैं थक रहा हूँ
पर क्या मैं यूँ ही गिर जाऊँगा
अपने को जाने बिना ही
अपनी राह से फिर जाऊँगा
ये तो मेरी नियति नहीं
मैं लडूंगा जूझता रहूँगा
जब तक खून की एक बूँद भी बची रहेगी
मैं डटा रहूँगा
और विश्वास है
मुझे मेरी पहचान मिलेगी .

सपने, अनदेखे अनजाने

सपने, अनदेखे अनजाने
जिनका सच से सम्बन्ध नहीं
क्यों आँखों में घिर आते हैं
फिर लगने लगती स्वर्ग ज़मीं
आम ज़िन्दगी के तनाव से
दूर कहीं ले जाते हैं
ये दिल क्यों डूबने लगता है
जब दूर ये चले जाते हैं
मैं खो गया हूँ इन सपनों में
मैं भूल गया हूँ जो गम है
इस ज़िन्दगी में है केवल दर्द
है लगा टूटने ये भ्रम है

वक़्त के बहाव में मुझे नहीं किसी का सहारा

वक़्त के बहाव में मुझे नहीं किसी का सहारा
जानूँ तैरना
पर हाथ नहीं चला पा रहा हूँ
सागर की गहराई कुछ इंच कम करने को
मैं तली में बैठने जा रहा हूँ
इस जीर्ण-शीर्ण काय पर
और भार अब मैं ढो नहीं सकता
ओ जलीय जीएवों सुन लो
हो जाओ खुश क्योंकि अब मैं
तुम्हारी भूख मिटाने को भोजन बन
तुम्हारे पास आ रहा हूँ

मैं समझ नहीं पा रहा हूँ

मैं समझ नहीं पा रहा हूँ
ये सब कुछ क्या हो रहा है
क्यों मुश्किलें कुकुरमुत्ते-सी बढ़ रही हैं
क्यों मेरा खुद से नियंत्रण खोता जा रहा है
उम्र कच्ची, आशाएं वयस्कता की
बोझ अपनों के सपनों का ढोते हुए
अब तक तो चला
पर अब असहाय होता जा रहा हूँ
मंझधार में मैं
और दूर है किनारा

मेरी रचनाओं का 'मैं' एक दिन

मेरी रचनाओं का 'मैं' एक दिन
बाहर निकल मुझसे पूछता है
तू मुझे ही केंद्र बनाकर क्यों
कागजों को रंगता है
क्यों मुझे ही तोड़ मरोड़कर
सामने परोसता है
क्यों निकालता है मेरे ही खून को पसीना बना
और क्यों फिर उसे खुद ही पोंछता है
अपने बोझ को मुझपर लाद
आप हल्का हो जाता है
तनाव की जलन में जलाने को क्यों
आग मेरे भीतर लगा जाता है
अपने ही 'मैं' को मुझसे यों सवाल करता देख
मैं अवाक रह गया
समझ गया की आज किसी और का होना तो दूर
आदमी खुद अपना ही नहीं रह गया

Sunday, April 11, 2010

रात अकेली अकेला मैं

रात अकेली अकेला मैं
बिस्तर पर बैठा हुआ
कभी देखूं आगे बढती हुई घडी को
कभी पन्ने फड़फड़ाती किताब
कभी अतल में झांकूं कुछ सोचने लग जाऊं
फिर खोलकर कापी कुछ लिखने बैठ जाऊं
सामने बजता हुआ रिकॉर्ड मुझे कुछ सुना रहा है
देखकर मुझे परेशान वो गुनगुना रहा है
हटाता हूँ उससे कान
कमरे में फिर नज़र घुमाता हूँ
टिकती नहीं कहीं वो खुद को
फिर पहले के हालत में पाता हूँ
कुछ कार्टूनों कुछ खिलाडियों की पपड़ी में चिपकी हुई
तस्वीरों के बगल में फड़फड़ाता हुआ कैलेंडर
मुझे बता रहा है
की मेरी हलाली का दिन नज़दीक आ रहा है
पर मुझे उसका डर नहीं इंतज़ार है
मौत से जूझने का मेरा पहले से ही इकरार है
हूँ अकेला अभी पर लम्बा नहीं अकेलापन
कुछ ही देर में मौत के साथ महफ़िल जमेगी
फिर उस घडी को किताब को
बाजे को कैलेंडर को
मुंह चिढाता हुआ
महबूबा के साथ मैं रूखसत हो जाऊँगा

तुम ही हो वो

तुम ही हो वो
जिसे जानने से पहले
मैं खुद से अनजान था
तुम ही हो वो
जिससे मिलने से पहले
बेगाना सारा जहां था
तुम ही हो वो
जिसने मुझे बताया कि
सपने क्या होते हैं
तुम ही हो वो
जिसने मुझे बताया
ये अपने क्या होता हैं
तुमसे ही तो मैंने सीखी
जीवन की परिभाषा
तुमसे मिलने के बाद ही जागी
है हर एक अभिलाषा
तुमसे मिलकर ही मुझको
जीवन का उद्देश्य मिला है
तुझसे मिलकर ही मुझको
खुश रहने का सन्देश मिला है
अगर कोई मुझसे पूछे ये
कौन तुम्हे है प्रियतम
दे दोगे किसके लिए तुम
हंस कर के अपना जीवन
मुख से नहीं और निकलेगा
मेरे कोई भी उत्तर
हाँ, तुम ही हो जिसे मैं चाहूं
निज जीवन से बढ़कर

ज़िन्दगी एक ऐसी पहेली है

ज़िन्दगी एक ऐसी पहेली है
उसे जितना सुलझाओगे
उतना उलझते जाओगे
उलझन की जलन इतनी बढ़ जाएगी
कि उसमें खुद ही जल जाओगे
हर चीज एक ऐसा सवाल है
जिसका जवाब किसी के पास नहीं
ख़ुशी नाम कि कोई चीज नहीं
और गम का कोई अंत नहीं
ये सवाल ज़िन्दगी से बड़े हो जाते हैं
हम बस उन्ही में खो जाते है
मैं भी उनमें से एक हूँ
दिल से सीधा सादा और नेक हूँ
फिर भी मुझ पर उठते कई सवाल हैं
मेरे नाम को लेकर मचते कई बवाल हैं
जब जब भी ऐसा होता है
मैं हैरान हो जाता हूँ
फिर अपने को कोसता हुआ
उन उलझनों में खो जाता हूँ

तुम ऐसे क्यों हो

तुम ऐसे क्यों हो
तुम्हारी बातें मेरी आत्मा को झिंझोड़ जाती हैं
तुम्हारी बातें मेरे वजूद को हिला जाती हैं
तुम्हारी बातें मुझे सोचने पर मजबूर करती हैं
जो मैं नहीं चाहता
मैं बुरा हूँ बदनाम हूँ
क्यों तुम मुझे बदलने की कोशिश करते हो
क्यों मेरे बाबत दूसरों से बातें करते हो
जानते नहीं
कि कीचड़ में पाँव मारने से अपना ही दामन मैला होता है
मैं तुम्हारी आशाओं पर खरा नहीं उतर सकता
नहीं पहुँच सकता वहाँ तक
जहां तुम मुझे पहुँचाना चाहते हो
आस टूटने से दुःख होता है
तुम्हे दुःख ही मिलेगा
ज़िन्दगी में पहली दफा मुझे किसी ने आदमी समझा है
मैं उसे भी नहीं खोना चाहता
इसीलिए चाहता हूँ कि तुम दूर ही रहो
तुम दूर रहोगे तो मुझे अपने
अस्तित्व का आभास होता रहेगा
जो तुम्ही ने मुझे दिया है
नहीं चाहता कि तुम्ही उसे ले लो
मैं तुम्हारे प्यार और विश्वास के काबिल नहीं
मुझसे दूर रहो !

तुम्हारे और मेरे बीच

तुम्हारे और मेरे बीच
जाने कौन सी ऐसी कड़ी है
जो हम दोनों को एक दुसरे से जोड़े हुए है
तुम्हारे अन्दर क्या है
मुझे नहीं पता
मेरे अन्दर क्या है
तुम्हे नहीं पता
पर फिर भी ऐसा लगता है कि
एक दूसरे के बारे में हम सब कुछ जानते हैं
जब जब कोई जलजला आता है
और लगता है कि अब हम
टूट जायेंगे बिखर जायेंगे
पर मुझे लगता है तब वो कड़ी
जो हमें जोड़े हुए है
और मजबूत हो जाती है
इसी तरह से कारवां बढ़ता जा रहा है
जैसे जैसे दूरियां बढ़ रही हैं
कड़ी मजबूत हो रही है
मजबूत होती रहेगी

Saturday, April 10, 2010

तुम्हारी आँखें

तुम्हारी आँखें
कुछ न कहकर भी एक महाग्रंथ रच देती हैं
जिसकी भाषा जिसकी लिपि से मैं अनजान हूँ
उन आँखों का उठाना
झुकना
कहीं टिककर रह जाना
उनमें तैरते डोरे, उनकी कोरें
अपने में न जाने कितनी
दास्तानें छुपाये हुए हैं
कहानियों का दीवाना मैं
उनके सामने होने के बावजूद
उन्हें पढ़ नहीं सकता
पर उनमें छुपे तथ्य को जाने बिना
रह भी नहीं सकता
तुम्हारी आँखें ही
मेरी बेचैनियों, मेरी उलझनों का सबब हैं
मैं उनकी गहराइयों में
न चाहकर भी डूब जाता हूँ
ऐसा
कि फिर उभर नहीं पाता हूँ
मुझे इस कदर न डुबाओ
कि कुछ कर न सकूं
यूँ बेबस न बनाओ
कि कुछ कर न सकूं

मैं साफ़ देख रहा हूँ उस दिन को

मैं साफ़ देख रहा हूँ उस दिन को
जब मैं सूली पर टंगा होऊँगा
लोग मुझ पर हँस रहे होंगे
पत्थरों से मेरा स्वागत कर रहे होंगे
कल तक मैं खुश था
क्यों कल से अनजान था
पर आज उदासी और परेशानी ही
मेरा चेहरा बन गई है
कल का जानना
सचमुच ही बड़ा दुखदायी है
तभी तो वो पीड़ा जो मेरे दिल में समाई है
रह रह के छलक आती है
आँखों में आँसू ही नहीं है
तभी तो वह बह नहीं पाती है
वो खुशियाँ वो ठहाके वो मुस्कराहट
अब दिल में नश्तर की तरह चुभती है
यह चुभन मुझे चीरती जा रही है
मैं कट रहा हूँ मैं मिट रहा हूँ
मेरी सांसें कीलों में ठुक कर
जड़ हो गई हैं
मेरी आँखें बंद हो रही है
अँधेरा छा रहा है



आँखें खोले देखता हूँ

आँखें खोले देखता हूँ
बस उस राह को जहां से
शायद कभी कोई मेरा आयेगा
दिखावे के कहकहों को
सच्ची मुस्कराहट में बदल जायेगा
हाँ मैं उसका इंतज़ार कर रहा हूँ
इस आस से कि
वो ज़रूर आएगा

ज़िन्दगी ख़ाक बन कर है अब रह गई

ज़िन्दगी ख़ाक बन कर है अब रह गई
हर कदम पर है दिक्कतों कि दीवार
नफरतें बढती ही जा रही है यहाँ
अब तो दिखता नहीं कहाँ गया प्यार
उलझनें ही उलझनें हैं बाकी रहीं
कमनसीबी का आलम है चारो सहर
ढूंढता हैं हर कोई पल ख़ुशी का यहाँ
पर ग़म बरसा रहा है अपना कहर
आदमखोरी का सुरूर चढ़ने लगा
इंसां भी हलाली का बुत बन गया
सोचों में गर्द ही गर्द छाने लगी
कत्लेआम में नहीं है अब कोई हया
हो रहा ये क्यों किसी को पाता नहीं है
ज़िन्दगी अब सभी की सजा बन रही है
सुधरेंगे कभी ये हालाते गुलशन
ऐसी तो मुझे अब उम्मीद नहीं है

चारों ओर के शोर से

चारों ओर के शोर से
परेशानियों के जोर से
जब हार कर एक पनाह चाहता हूँ
तो खुद को अकेला पाता हूँ
इतना अकेला कि उस अकेलेपन में
खुद ही खो जाता हूँ
इसलिए निराश हूँ
उदास हूँ हताश हूँ

जब कभी मन करता है

जब कभी मन करता है
कि कुछ लिखूं
तब खुद को विषयहीन पाता हूँ
पर कभी कभी मन में विचारों का
ऐसा उद्वेलन होता है
कि मैं हैरान हो जाता हूँ
उनके प्रभाव को उस अनुभव को
शब्दों में परिभाषित नहीं कर पाता हूँ
फिर सोचता हूँ कि जब लिखता हूँ
तो उसका मतलब क्या होता है
मेरे मन का मंथन किसी को क्या देता है
तब सोचता हूँ कि लिखना बेकार है
पर ये कैसे भूल सकता हूँ मैं
कि लिखने से मुझे प्यार है
बस सिर्फ इसीलिए लिखता ही जा रहा हूँ
कैसी क्यों और किसके लिए लिख रहा हूँ
ये जानने में खुद को असमर्थ पा रहा हूँ

मैं और तुम

मैं और तुम
नदी के दो पार हैं
जो साथ तो रहते हैं
पर कभी मिल नहीं सकते
रेल की पटरियां हैं
जो दूसरों को तो मंजिल तक पहुँचाती है
पर खुद कभी एक नहीं हो सकती
भले ही हम-तुम आमने सामने हैं
पास हैं
पर दूरियाँ हमेशा बनी रहेगी
मैं तुमसे कुछ कह नहीं सकता
क्यों कि राह में लफ़्ज़ों के खो जाने का डर है
ऐसा होने से और कुछ नहीं बस यही होगा कि
मैं तोड़ इया जाऊँगा
और मैं जानता हूँ कि
टूटा हुआ खिलौना
बेकार हो जाता है

जाने क्या होता अगर

जाने क्या होता अगर
मुझे न लगी होती ठोकर
होता मैं वहां जहाँ से
मैं लौट पाता नहीं
राह तो खो ही चुकी थी
मंजिल भी खो जाती कहीं
आँधियों की धूल को साफ़ कर
जब खोली मैंने आँखें
पाया की खड़ा हूँ वीराने में
कोई नहीं था साथी कहीं भी
ऐसी कुछ भूल हो गयी थी
जाने अनजाने में
भटकते भटकते एक नदी मिल गई
धार ले गई वहां मुझे
जहां सभ्यता का निवास था
शायद पा जाऊँ लक्ष्य को अब
ऐसा होने लगा विश्वास था
भले न छू पाया शिखर को
पर हूँ जहां ऊँचा ही हूँ
बुझ जाता प्रकाश मेरे हृदय का
तो रवि भी तिमिर मिटा पाटा नहीं
राह तो खो ही चुकी थी
मंजिल भी खो जाती कहीं



Friday, April 9, 2010

हे सत्य मार्ग के पथिक

तेज़ चल और तेज़ चल
हे सत्य मार्ग के पथिक
कहीं मिलेगा सुख का सोता
कहीं मिलेंगे दुःख अधिक
ज़िन्दगी में ग़र कभी
हारना मत हौसला तू
भूल जा उसको वहीँ
मुश्किलें तो खेल हैं
तू खेल उनसे खूब कर
ज़िन्दगी का ले मज़ा
और छोड़ दे मरने का डर
राह मुश्किल है सही है
पर तू किसी से कम है क्या
हाथ उसका तेरे ऊपर
फिर उलझनों का ग़म है क्या
कर ले ये मन में फैसला कि
लेकर विजय तू आएगा
चाहे गिरे फिर वज्र तुझ पर
तू पीठ न दिखलाएगा
लेकर नहीं आया तू कुछ
तुझको नहीं खोने का भय
है तेज तेरा तेज यों कि
सूरज पुकारे तेरी जय
मिट्टी का करके तू तिलक
बढ़ता ही चल अभियान में
गिरिराज भी मुश्किल का
झुक जायेगा तेरे सम्मान में
हस्ती किसी कि क्या है तेरे
सामने सब हीन हैं
तू है विशाल नभ-सा तथा
हलकी तुझसे ये ज़मीन है
सब दश दिशायें गा रहीं
तेरे लिए शुभ गीत हैं
तू लड़ता चल तू लड़ता चल
आखिर में तेरी जीत है
सबकी निगाह तुझ पे है
तू ही आशाओं का केंद्र है
तू ही तो है मानव में इंद्र
और तू ही तो धर्मेन्द्र है
झेल के सब वार पथ के
यदि तू कहीं गिर जायेगा
मर कर भी मेरे वीर जग में
तू अमर हो जायेगा
इसलिये तू शोक न कर
पहचान तेरी है अमिट
तेज़ चल और तेज़ चल
हे सत्य मार्ग के पथिक

जाने क्यों मुझे अपनी हर पसंद

जाने क्यों मुझे अपनी हर पसंद
नापसंद लगने लगी है
हर भौतिक चीज से विरक्ति-सी हो गयी है
ये सब क्या है क्यों है इसमें अन्जान हूँ
बस इतना ही जानता हूँ कि
इस माहौल से मुझे घृणा हो गई है
हर बात कितनी कठिन सी है
हर लम्हा कितना तना हुआ
ये ज़िन्दगी अब तो मेरे लिए
एक पहेली बन गई है
ससे मुश्किल यही बात कि
मुश्किल का ही पता नहीं
इस मुश्किल कि मुश्किल अब मेरे
अस्तित्व से भी बड़ी हो गई है

दोस्ती वह भाव जिसमें दोस्त का कल्याण हो

दोस्ती वह भाव जिसमें दोस्त का कल्याण हो
वह दोस्त कैसा दोस्त है जो स्वयं नादान हो
दोस्त ग़र जाये गलत तो खुल के उससे कह सके
मन हो उसका यों सहज कटु वाक्य को भी सह सके
जो दोस्त कि मुस्कान को समझे सदा अपनी ख़ुशी
उसका हृदय फट जाये जब दोस्त को हो सुख नहीं
ले ले जो उसके ग़म सभी दे दे उसे अपनी हंसी
मुश्किलों में ही दोस्त कि पहचान होती है सही
दोस्ती संसार में कुदरत का एक वरदान हँ
जो पाले सच्चा दोस्त वह सचमुच ही भाग्यवान है

देखा है मैंने अपने साए को भी

देखा है मैंने अपने साए को भी
खुद से आगे निकलते और
ये भी देखा है कि अँधेरा होने पर
वो कैसे काफूर हो जाता है
पर जाने तुम पर ये भरोसा क्यों है
कि जब कभी मैं लड़खड़ाउंगा
तुम्हारा हाथ मुझे थामने को ज़रूर बढेगा
जब कभी मैं अँधेरे में खोने लगूंगा
तुम मुझ में रौशनी भर दोगे
जब कभी मैं खुद से बेकाबू होऊँगा
तुम मुझे बिखरने न दोगे
खुद पर तो मुझे यकीन नहीं
पर जाने क्यों तुम पर मुझे भरोसा है

हाथ तो तुम बढ़ा दो ज़रा अब सखे

हाथ तो तुम बढ़ा दो ज़रा अब सखे
कोई गिरता हुआ है संभल जायेगा
खो गया है कोई उलझनों में अगर
राह दे दो उसे लक्ष्य मिल जायेगा
है अँधेरा बड़ा मुश्किलों का यहाँ
भर दो तुम उजाला धरम है यही
बन सके तुम यदि पथ प्रदर्शक कभी
उससे बढ़कर यहाँ कोई पुन्य नहीं
रह में शूल बिखरे पड़े हैं कई
चुन सको कुछ अगर तो क्या बात है
सूर्य न बन सके तो दिया ही बनो
कर दो तुम रोशनी अगर रात है

मुस्कुराता हुआ आशियाँ था मेरा

मुस्कुराता हुआ आशियाँ था मेरा
था बहारों का मौसम अनोखा वहां
फूल ही फूल चारो तरफ थे खिले
खूबसूरत था ऐसा जो मिलता कहाँ
आग किसने लगा दी है इसमें मगर
जलने लगा क्यूँ गुलिस्तां मेरा
फूल सारे के सारे झुलसने लगे
इन हवाओं का रुख अब किधर को फिरा
इक दूजे के लिए ख़ून बहता था कल
आज फिर खून कि प्यास क्यूँ है बड़ी
क्या मोहब्बत से थे लोग सब खुश नहीं
जो आज नफरत है अपने परवां चढ़ी
ज़िन्दगी प्यार देने का बस नाम है
प्यार से तो बड़ा न कोई काम है
आज बदला है कैसे नज़ारा मगर
प्यार मरता यहाँ अब सरेआम है

है देश उसका क्या

है देश उसका क्या
यही उसको नहीं पता
इसमें नहीं है कुछ भी पर
उसकी कोई खता
सब भाप हो गए हैं
थे जीवन में जितने रस
जीना है उसको कैसे भी
वह जानता है बस
है क्या सही क्या है गलत
उसको नहीं ये ज्ञान
तिल-तिल के जैसे मर गया
उसके निज सम्मान
उसकी कहानी बस यही
जिंदा है अभी वो
वह जानता है शायद उसे
कभी कफ़न नसीब न हो
फिर भी है खुश जाने वो क्यों
है पास उसके क्या
उसने तो डाली बेच
सारी शर्म और हया
लड़ता रहा ताउम्र वो
किसी और से नहीं
दुश्मन खुद का खुद है वही
जिसे वह देखता नहीं

उसने बना लिया है अमृत

उसने बना लिया है अमृत
नाली के पानी को
आग दे दी भूख की
अपनी जवानी को
कतरन के वस्त्र 'रेशमी'
उसके शरीर पर
महलों का बादशाह है
सींकों का उसका घर
कहते हैं सब उसको ग़रीब
पर वो तो अमीर है
आँखों के मोतियों की
उसके पास भीड़ है
बेसरम के झाड सा
उसका ज़मीर है
सबकी ये बात झूठ है
कि वो फ़कीर है
वह चीखता है लोटता है
अपने ही हाल पर
मानो रहा हो गा वो
मस्ती की ताल पर
परिवार है बड़ा भरा
बच्चे हैं दर्जनों
इससे बड़ी ख़ुशी की
क्या बात सज्जनों
वो बात है अलग कि
खाने को नहीं है कुछ
दारु को देखते ही सारी
भूख जाती बुझ

कुछ करते करते कभी कभी

कुछ करते करते कभी कभी
जी उचट सा जाता है
फिर यादों का साया बाहों में
गाने लगती है याद
गीत कोई प्यारा सा
रुक जाता है वह मन जो
फिरता मारा मारा सा
तभी कर्तव्य जताने लगता
बोध है अपना
शीशे के जैसा टूट है जाता
मेरा सपना
फिर देने लगते दस्तक प्रश्न सभी
मेरे मन के दर पर
नीरसता की चादर छा जाती
मेरे आँगन पर

कवितायेँ मेरी क्या है

कवितायेँ मेरी क्या है
कह नहीं सकता
कभी दिल का हाल
कभी दिमाग का तनाव
कभी मन की जलन और कभी
कुछ लिखते चले जाने की चाहत
भावो को शब्दों में संजोने में
कभी सफल रहता हूँ
कभी भटक जाता हूँ
भटक जाने पर भी जाने क्यों
लिखता ही चला जाता हूँ
कह नहीं सकता कि हर वो चित्र
जो मेरी कलम खींचती है
अर्थपूर्ण हो
क्या पता जो लिखता हूँ
वह लोक अलोक की सीमा से परे हो
सत्य से सारोकार न रखता हो
पर एक बात सच है
जिस पर मुझे शक नहीं
वो ये कि
मैं एक कवि हूँ