Saturday, April 10, 2010

मैं और तुम

मैं और तुम
नदी के दो पार हैं
जो साथ तो रहते हैं
पर कभी मिल नहीं सकते
रेल की पटरियां हैं
जो दूसरों को तो मंजिल तक पहुँचाती है
पर खुद कभी एक नहीं हो सकती
भले ही हम-तुम आमने सामने हैं
पास हैं
पर दूरियाँ हमेशा बनी रहेगी
मैं तुमसे कुछ कह नहीं सकता
क्यों कि राह में लफ़्ज़ों के खो जाने का डर है
ऐसा होने से और कुछ नहीं बस यही होगा कि
मैं तोड़ इया जाऊँगा
और मैं जानता हूँ कि
टूटा हुआ खिलौना
बेकार हो जाता है

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