Friday, April 9, 2010

हे सत्य मार्ग के पथिक

तेज़ चल और तेज़ चल
हे सत्य मार्ग के पथिक
कहीं मिलेगा सुख का सोता
कहीं मिलेंगे दुःख अधिक
ज़िन्दगी में ग़र कभी
हारना मत हौसला तू
भूल जा उसको वहीँ
मुश्किलें तो खेल हैं
तू खेल उनसे खूब कर
ज़िन्दगी का ले मज़ा
और छोड़ दे मरने का डर
राह मुश्किल है सही है
पर तू किसी से कम है क्या
हाथ उसका तेरे ऊपर
फिर उलझनों का ग़म है क्या
कर ले ये मन में फैसला कि
लेकर विजय तू आएगा
चाहे गिरे फिर वज्र तुझ पर
तू पीठ न दिखलाएगा
लेकर नहीं आया तू कुछ
तुझको नहीं खोने का भय
है तेज तेरा तेज यों कि
सूरज पुकारे तेरी जय
मिट्टी का करके तू तिलक
बढ़ता ही चल अभियान में
गिरिराज भी मुश्किल का
झुक जायेगा तेरे सम्मान में
हस्ती किसी कि क्या है तेरे
सामने सब हीन हैं
तू है विशाल नभ-सा तथा
हलकी तुझसे ये ज़मीन है
सब दश दिशायें गा रहीं
तेरे लिए शुभ गीत हैं
तू लड़ता चल तू लड़ता चल
आखिर में तेरी जीत है
सबकी निगाह तुझ पे है
तू ही आशाओं का केंद्र है
तू ही तो है मानव में इंद्र
और तू ही तो धर्मेन्द्र है
झेल के सब वार पथ के
यदि तू कहीं गिर जायेगा
मर कर भी मेरे वीर जग में
तू अमर हो जायेगा
इसलिये तू शोक न कर
पहचान तेरी है अमिट
तेज़ चल और तेज़ चल
हे सत्य मार्ग के पथिक

जाने क्यों मुझे अपनी हर पसंद

जाने क्यों मुझे अपनी हर पसंद
नापसंद लगने लगी है
हर भौतिक चीज से विरक्ति-सी हो गयी है
ये सब क्या है क्यों है इसमें अन्जान हूँ
बस इतना ही जानता हूँ कि
इस माहौल से मुझे घृणा हो गई है
हर बात कितनी कठिन सी है
हर लम्हा कितना तना हुआ
ये ज़िन्दगी अब तो मेरे लिए
एक पहेली बन गई है
ससे मुश्किल यही बात कि
मुश्किल का ही पता नहीं
इस मुश्किल कि मुश्किल अब मेरे
अस्तित्व से भी बड़ी हो गई है

दोस्ती वह भाव जिसमें दोस्त का कल्याण हो

दोस्ती वह भाव जिसमें दोस्त का कल्याण हो
वह दोस्त कैसा दोस्त है जो स्वयं नादान हो
दोस्त ग़र जाये गलत तो खुल के उससे कह सके
मन हो उसका यों सहज कटु वाक्य को भी सह सके
जो दोस्त कि मुस्कान को समझे सदा अपनी ख़ुशी
उसका हृदय फट जाये जब दोस्त को हो सुख नहीं
ले ले जो उसके ग़म सभी दे दे उसे अपनी हंसी
मुश्किलों में ही दोस्त कि पहचान होती है सही
दोस्ती संसार में कुदरत का एक वरदान हँ
जो पाले सच्चा दोस्त वह सचमुच ही भाग्यवान है

देखा है मैंने अपने साए को भी

देखा है मैंने अपने साए को भी
खुद से आगे निकलते और
ये भी देखा है कि अँधेरा होने पर
वो कैसे काफूर हो जाता है
पर जाने तुम पर ये भरोसा क्यों है
कि जब कभी मैं लड़खड़ाउंगा
तुम्हारा हाथ मुझे थामने को ज़रूर बढेगा
जब कभी मैं अँधेरे में खोने लगूंगा
तुम मुझ में रौशनी भर दोगे
जब कभी मैं खुद से बेकाबू होऊँगा
तुम मुझे बिखरने न दोगे
खुद पर तो मुझे यकीन नहीं
पर जाने क्यों तुम पर मुझे भरोसा है

हाथ तो तुम बढ़ा दो ज़रा अब सखे

हाथ तो तुम बढ़ा दो ज़रा अब सखे
कोई गिरता हुआ है संभल जायेगा
खो गया है कोई उलझनों में अगर
राह दे दो उसे लक्ष्य मिल जायेगा
है अँधेरा बड़ा मुश्किलों का यहाँ
भर दो तुम उजाला धरम है यही
बन सके तुम यदि पथ प्रदर्शक कभी
उससे बढ़कर यहाँ कोई पुन्य नहीं
रह में शूल बिखरे पड़े हैं कई
चुन सको कुछ अगर तो क्या बात है
सूर्य न बन सके तो दिया ही बनो
कर दो तुम रोशनी अगर रात है

मुस्कुराता हुआ आशियाँ था मेरा

मुस्कुराता हुआ आशियाँ था मेरा
था बहारों का मौसम अनोखा वहां
फूल ही फूल चारो तरफ थे खिले
खूबसूरत था ऐसा जो मिलता कहाँ
आग किसने लगा दी है इसमें मगर
जलने लगा क्यूँ गुलिस्तां मेरा
फूल सारे के सारे झुलसने लगे
इन हवाओं का रुख अब किधर को फिरा
इक दूजे के लिए ख़ून बहता था कल
आज फिर खून कि प्यास क्यूँ है बड़ी
क्या मोहब्बत से थे लोग सब खुश नहीं
जो आज नफरत है अपने परवां चढ़ी
ज़िन्दगी प्यार देने का बस नाम है
प्यार से तो बड़ा न कोई काम है
आज बदला है कैसे नज़ारा मगर
प्यार मरता यहाँ अब सरेआम है

है देश उसका क्या

है देश उसका क्या
यही उसको नहीं पता
इसमें नहीं है कुछ भी पर
उसकी कोई खता
सब भाप हो गए हैं
थे जीवन में जितने रस
जीना है उसको कैसे भी
वह जानता है बस
है क्या सही क्या है गलत
उसको नहीं ये ज्ञान
तिल-तिल के जैसे मर गया
उसके निज सम्मान
उसकी कहानी बस यही
जिंदा है अभी वो
वह जानता है शायद उसे
कभी कफ़न नसीब न हो
फिर भी है खुश जाने वो क्यों
है पास उसके क्या
उसने तो डाली बेच
सारी शर्म और हया
लड़ता रहा ताउम्र वो
किसी और से नहीं
दुश्मन खुद का खुद है वही
जिसे वह देखता नहीं

उसने बना लिया है अमृत

उसने बना लिया है अमृत
नाली के पानी को
आग दे दी भूख की
अपनी जवानी को
कतरन के वस्त्र 'रेशमी'
उसके शरीर पर
महलों का बादशाह है
सींकों का उसका घर
कहते हैं सब उसको ग़रीब
पर वो तो अमीर है
आँखों के मोतियों की
उसके पास भीड़ है
बेसरम के झाड सा
उसका ज़मीर है
सबकी ये बात झूठ है
कि वो फ़कीर है
वह चीखता है लोटता है
अपने ही हाल पर
मानो रहा हो गा वो
मस्ती की ताल पर
परिवार है बड़ा भरा
बच्चे हैं दर्जनों
इससे बड़ी ख़ुशी की
क्या बात सज्जनों
वो बात है अलग कि
खाने को नहीं है कुछ
दारु को देखते ही सारी
भूख जाती बुझ

कुछ करते करते कभी कभी

कुछ करते करते कभी कभी
जी उचट सा जाता है
फिर यादों का साया बाहों में
गाने लगती है याद
गीत कोई प्यारा सा
रुक जाता है वह मन जो
फिरता मारा मारा सा
तभी कर्तव्य जताने लगता
बोध है अपना
शीशे के जैसा टूट है जाता
मेरा सपना
फिर देने लगते दस्तक प्रश्न सभी
मेरे मन के दर पर
नीरसता की चादर छा जाती
मेरे आँगन पर

कवितायेँ मेरी क्या है

कवितायेँ मेरी क्या है
कह नहीं सकता
कभी दिल का हाल
कभी दिमाग का तनाव
कभी मन की जलन और कभी
कुछ लिखते चले जाने की चाहत
भावो को शब्दों में संजोने में
कभी सफल रहता हूँ
कभी भटक जाता हूँ
भटक जाने पर भी जाने क्यों
लिखता ही चला जाता हूँ
कह नहीं सकता कि हर वो चित्र
जो मेरी कलम खींचती है
अर्थपूर्ण हो
क्या पता जो लिखता हूँ
वह लोक अलोक की सीमा से परे हो
सत्य से सारोकार न रखता हो
पर एक बात सच है
जिस पर मुझे शक नहीं
वो ये कि
मैं एक कवि हूँ