Friday, April 9, 2010

हाथ तो तुम बढ़ा दो ज़रा अब सखे

हाथ तो तुम बढ़ा दो ज़रा अब सखे
कोई गिरता हुआ है संभल जायेगा
खो गया है कोई उलझनों में अगर
राह दे दो उसे लक्ष्य मिल जायेगा
है अँधेरा बड़ा मुश्किलों का यहाँ
भर दो तुम उजाला धरम है यही
बन सके तुम यदि पथ प्रदर्शक कभी
उससे बढ़कर यहाँ कोई पुन्य नहीं
रह में शूल बिखरे पड़े हैं कई
चुन सको कुछ अगर तो क्या बात है
सूर्य न बन सके तो दिया ही बनो
कर दो तुम रोशनी अगर रात है

No comments:

Post a Comment