Saturday, April 17, 2010

मुझे प्यारा है अकेलापन

मुझे प्यारा है अकेलापन
क्योंकि तब तुम मेरे पास होती हो
लगता है सुहाना अँधेरा
क्योंकि तब तुम मुझे
अपनी रोशनी से भर देती हो
तब तुम्हारी हँसी मेरे कानों में
खनकती है
तुम्हारी खुशबू से मेरी साँसें महकती हैं
अच्छा लगता है जब तुम्हे अपने आप में पाता हूँ
तुम्हे पाकर तुममें ही खो जाता हूँ
दुनिया की सारी खूबसूरती
साड़ी नेमतें
एक तुम्हारे एहसास में ही समा गई हैं
तुम्हारी आँखों की चमक
दर्द-ओ-गम के सारे निशाँ मिटा गई है
अपने अकेलेपन में मैं
तुम्हारी यादों को समेटता हूँ
जब अँधेरा होता है
तब तुम्हारे मासूम चहरे को देखता हूँ
तुमने मेरे हर पल को
ख़ुशी से भर दिया है
हर गम को दूर कर दिया है
पर ऐसा तो अक्सर
पागलों के साथ होता है
शायद तुमने मुझे पागल कर दिया है

ऐ मेरी रुकी हुई कलम बता

ऐ मेरी रुकी हुई कलम बता
तुझे किस विषय की तलाश है
किस चीज की कमी है तुझे
सब कुछ तो तेरे पास है
कहीं दर्द-ओ-गम है छुपा हुआ
कहीं पर ख़ुशी अथास है
कहीं 'अहा' का उदघोष है
कहीं पर निकलती आह है
कहीं प्यार का सागर भरा
फूलों का गुलिस्तान है
काँटें ही काँटें हैं कहीं
नफरत का रेगिस्तान है
कहीं है घृणा बिछी हुई
कोई हास्य से सराबोर है
हर कण में है विषय निहित
कुछ अर्थ तो चारो ओर है
है क्या अजब ये बात फिर भी
बुझती नहीं तेरी प्यास है
ऐ मेरी रुकी हुई कलम बता
तुझे किस विषय की तलाश है

जाने तुमने कह दिया कैसे

जाने तुमने कह दिया कैसे
न मिले तो दोष हमारा होगा
हमारी चाहत के बिना
न अपना गुज़ारा होगा
कैसे समझाएँ तुमको कि
सब कुछ इतना आसान नहीं होता
लोगों के हुजूम का जो ढाँचा है
वह इतना बेजान नहीं होता
सांस भी लो तो खड़े हो जाते हैं सवाल
धडके जो दिल तो मच जाता है बवाल
फिर ये तो दो आत्माओं के मिलने की बात है
न ही अपने ऊपर किसी अपने का हाथ है
फिर कटेगी कैसे वो डगर जिससे
खुद हम ही अनजान हैं
कहना तो ठीक है
करना न आसान है
तुम्हारा भगवान् भी न जाने
क्या अंजाम हमारा होगा
जाने तुमने कह दिया कैसे
न मिले तो दोष हमारा होगा

पास हो तुम दूर भी

पास हो तुम दूर भी
चेहरा रहता है हमेशा आँखों के सामने
पर बढ़ता हूँ जब भी मैं हाथों को थामने
दूरी कभी घटती नहीं
खुशनसीब हूँ मैं मजबूर भी
पास हो तुम दूर भी
सोचा नहीं था ये की आ जायेंगे यहाँ तक
छा जाओगी तुम्हीं बस धरती से आसमाँ तक
पर जाएँ अब किधर कि
राह कोई मिलती नहीं
कुछ बंधन भी हैं दस्तूर भी
पास हो तुम दूर भी

मुसीबत तो चारो तरफ अब है मेरे

मुसीबत तो चारो तरफ अब है मेरे
कोई तो बता दे कहाँ है सहारा
मौजों में बह-बह के मैं थक गया हूँ
नहीं सूझता है कहाँ है किनारा
नहीं दम है मुझमें की अब लड़ सकूँ मैं
की अब तन बदन तो मेरे टूटता है
निराशा ही दिल में तो अब बस रही है
आशा से दामन मेरा छूटता है
बस एक रोशनी की किरण गर मिले तो
रोशन मैं कर दूँ ये सारा नज़ारा
मौजों में बह-बह के मैं थक गया हूँ
नहीं सूझता है कहाँ है किनारा

जब से तुम्हारे नाम के एहसास ने

जब से तुम्हारे नाम के एहसास ने
मेरे दिल में घर कर लिया है
तब से इसने एक अनजानी सी ख़ुशी से
मेरे तन मन को भर दिया है
तुम्हारा मासूमियत में डूबा हुआ चेहरा
मुझे तुम्हारी यादों में डुबा देता है
तुम्हारा वो खूबसूरत मसलफा
मेरे हर गम को भुला देता है
तुम्हारी बातों की वो संजीदगी
मुझे अन्दर तक छू जाती है
तुम्हारी कोमल हँसी की खनक
मुझमें नूर जगा जाती है
क्यों तुमसे मिलने की ललक
दिन ब दिन बढ़ती जा रही है
मेरी हर बात हर ख्याल से
अब बस तुम्हारी ही खुशबू आ रही है
अनजान हूँ इस एहसास को क्या नाम दूं
जब मेरा एहसास ही तुम बन गई हो
कहीं ये प्यार तो नहीं
जो तुम मेरे दिलो दिमाग में जम गई हो