Tuesday, April 13, 2010

हाथ में जब तुम्हारा हाथ

हाथ में जब तुम्हारा हाथ
फिर मुझे गम है क्या
रास्ता लंबा ही सही
गुज़र जाएगा

जब मैं अपने कर्तव्य पथ पर चलते चलते

जब मैं अपने कर्तव्य पथ पर चलते चलते
थक जाता हूँ
तब तुम्हारा स्नेहिल आलोक ही
मुझे नई ऊर्जा देता है
जब ऊब की चादर छाने लगती है
तब तुम्हारी चमकती आँखें
एक शबनमी ताजगी लेकर आती है
मैं अपने लक्ष्य की ओर
तुम्हारा हाथ थामकर
तुम्हे ही पाने के लिए बढ़ रहा हूँ
जब तक तुम्हारा हाथ मेरे हाथों में है
तब तक विश्वास है
कि मेरे कदम डगमगायेंगे नहीं
क्योंकि तुम मेरी शक्ति का वो श्रोत हो
जो न केवल मुझे ऊर्जावान बनता है
बल्कि मेरे अन्तः के समस्त
अवसादक भार को भी
सोख लेता है

पता नहीं क्यों

पता नहीं क्यों
अपनी कविताओं में 'तुम' 'तुम' 'तुम' लिखते हुए
मैं उकताता नहीं हूँ
तुम्हारे मुस्कुराते हुए चेहरे को
अपनी आँखों में बसा
मैं अपने हर एक शब्द में
तुम्हे सिर्फ तुम्हे देखता रहता हूँ
तुम, जिसमें दुनियाभर की
मासूमियत, नजाकत और खूबसूरती समाई हुई है
तुम जिसकी खुशबू
मेरे दिल के आँगन में छाई हुई है
तुम्हारे रोशनी बिखेरते चेहरे को देखकर
मैं कैसे ऊब सकता हूँ
तुम मेरी साँसों में बसी हो
मेरी धड़कन में तुम्हारी ही अनुगूंज है
अब अगर मैं अपनी साँसों, अपनी धडकनों से ही
ऊबने लगूंगा
तो जियूँगा कैसे ?

तुम्हारी यादें मेरे दिल से

तुम्हारी यादें मेरे दिल से कुछ जुडी हैं ऐसे
कि मेरी रूह पे एक नाम तेरा बस लिखा हो जैसे

जब कभी मैं तुम्हारी यादों से घिरता हूँ

जब कभी मैं तुम्हारी यादों से घिरता हूँ
तब अपनी रचनाओं में
तुम्हे खोजने लगता हूँ
क्योंकि उनके रेशे रेशे में तुम
समाई हुई हो
उनका हर एक शब्द मुझे
तुम्हारी मौजूदगी का एहसास दिलाता है
मन में तुम्हारी तस्वीर
कुछ इस कदर बनी हुई है
कि उसकी छवि से चाहकर भी
मैं अपनी नज़रें हटा नहीं पाटा
जब जब दिल तुम्हारा साथ पाने को तड़पता है
मैं तुम्हारी उस तस्वीर को देखता हुआ दिलासा देता रहता हूँ
कि तुम सिर्फ और सिर्फ मेरी हो
और मेरा दिल मानता है
कि मैं सच कह रहा हूँ

कभी कभी सोचता हूँ

कभी कभी सोचता हूँ
कि तुमने मुझे क्या से क्या बना दिया है
कल तक मेरी कविताओं का रूप क्या था
और आज क्या है
कल तक मैं अपने चारों ओर नज़रें घुमाता था
पर आज तुममें ही खो कर रह गया हूँ
मेरी रचनाओं का आदि और अंत
तुममें ही सिमटकर रह गया है
तुम ही उनकी प्रेरणा बन गयी हो
मेरी सोचों मेरे ख्यालों में केवल
तुम्हारी ही एक तस्वीर दिखती है
मेरी नज़र हर नज़ारे में
बस तुम्हे खोजती है
समझ नहीं पाता इन सब को क्या नाम दूँ
किस नतीजे पर पहुँचूँ
कि मेरे लिए तुम कौन हो
क्या सिर्फ एक नाम
जो मुझे खुशबू से भर देता है ?

कलेजे में हज़ारों दाग

कलेजे में हज़ारों दाग दिल में हसरतें लाखों
कमाई ले चला हूँ साथ अपनी ज़िन्दगी भर की

जानता नहीं बातों का मेरी

जानता नहीं बातों का मेरी
असर क्या है
जो आते हैं ये
शामो-सहर क्या है
ऊँची ही रही नज़र
ऊँचा ही रहा सर
फिर भी अनजान हूँ
मेरी डगर क्या है

जब मैं अपने चारो ओर पड़े

जब मैं अपने चारो ओर पड़े
अस्त व्यस्त सामान को देखता हूँ
तुम्हारी स्मृतियों से घिर जाता हूँ
अँधेरी खिड़की के उस पार
कहीं दूर से
तुम झाँकने लगती हो
तुम्हारे बिना मेरा चित्त भी
वैसे ही बिखरा पड़ा रहता है
कामना होती है तुम आओ
मेरे बिखरे बालों को संवारो सुलझाओ
गाल पर एक प्यारी चपत लगा
बिखरी किताबों को जमाओ
और मुझमें फिर से जुट जाने कि
प्रेरणा भर जाओ