जब मैं अपने चारो ओर पड़े
अस्त व्यस्त सामान को देखता हूँ
तुम्हारी स्मृतियों से घिर जाता हूँ
अँधेरी खिड़की के उस पार
कहीं दूर से
तुम झाँकने लगती हो
तुम्हारे बिना मेरा चित्त भी
वैसे ही बिखरा पड़ा रहता है
कामना होती है तुम आओ
मेरे बिखरे बालों को संवारो सुलझाओ
गाल पर एक प्यारी चपत लगा
बिखरी किताबों को जमाओ
और मुझमें फिर से जुट जाने कि
प्रेरणा भर जाओ
Tuesday, April 13, 2010
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