Friday, April 16, 2010

एक जलजला आया

एक जलजला आया
सब कुछ मिटा गया
जो बचा था वो बस मलबा था
लाशें थी
लाशें मकानों की लाशें इंसानों की
लाली चढ़ी थी खून की ज़मीन पर
ज़िन्दगी टंगी थी वक़्त की संगीन पर
लाशों के क्रिया कर्म का वक़्त आया
बचे लोगों ने गड्ढे खोदे आग जलाई
अपना धर्म निभाया
पर कुछ लोग उन्ही गड्ढों में
अपने घरों की नींव धरने लगे
चिता की गरमाहट से
अपने कमरे भरने लगे
क्या हमारा खून इतना ठंडा हो गया है
की उसके उबाल के लिए
चिता की आग ज़रूरी है
भाई को भाई का गला काटने में भी हिचक नहीं
ये मानव के किस गुण की छुरी है

तूफ़ान सरीखी हवाएं

तूफ़ान सरीखी हवाएं
ये नया फरमान ला रही है
मुसलाधार बारिश
क्यों तुम्हारी याद दिला रही है
काफी दिनों से तो ऐसा हुआ न था
तुम्हारी कमी के एहसास ने
अब तक छुआ न था
फिर क्यों ये बदलता मौसम
मुझे बदलता जा रहा है
अपने बहाव में बहाकर मुझे
तुम्हारे पास ला रहा है
ये अनसुलझे अनबुझे सवाल
एक हकीक़त बयान करते हैं
कि मेरे सपने अभी भी तुमसे
जुदा होने के ख़याल से डरते हैं
तुम अब भी मेरी साँसों में समाई हो
अब भी तुम्हारे नग़में
मेरे ख़्वाबों में बसते हैं

आज पहली बारिश ने

आज पहली बारिश ने
अपनी बूंदों से जग को सराबोर कर दिया
गिरते पानी के अनजाने रंग ने
अचानक ही सबको खुद के रंग में रंग दिया
हर तरफ एक सा ही भीगा हुआ माहौल था
हर तरफ नमी थी गिरती बूंदों का उछाल था
हर चीज़ नए रूप में दिखने लगी एक सी
हर भीगे इंसान की सूरत और सीरत
जैसे दिखने लगी नेक सी
पहली बारिश ने हवा में उडती धूल को धो दिया
तवे सी तपती पथरीली ज़मीन को
बौछारों ने सुखद ठंडक में डुबो दिया
पर जाने हमारे दिलों में वो ठंडक कब आएगी
जो हमें इस वतन में अमन से जीना सिखलाएगी
जाने वो बारिश कब आएगी
जो दिलों में जमी गर्द को धो जाएगी
कब तक हम एक दूसरे के खून से नहाते रहेंगे
कब देश से ये नफरत का तूफ़ान जायेगा
जाने कब प्यार लिए सुहाना सावन आएगा

अब मैं जब कभी भी सुकून की तलाश में

अब मैं जब कभी भी सुकून की तलाश में
अपनी आँखें बंद करता हूँ
तो हर बार मेरी हार सामने आकर
मेरे वजूद को चुनौती देने लगती है
हर वो मोड़ जहां मैं चकराया
हर वो राह जहां मैंने ठोकर खायी
एक नश्तर-सी बन
दिल में चुभने लगती है
जीत का ज़ायका कभी पता ही न चला
मन में लगी आग में हरदम ही मैं जला
मेरा हर कयास हर कोशिश
नाकाम होती गई
ग़मगीन अंधेरों की गहराइयों में
मुझे और अन्दर डुबोती गई
अब मैं कहाँ हूँ
ये मुझे क्या, किसी को भी नहीं पता
हर वक़्त ही मुझसे होती रही
कोई न कोई ख़ता
मैं ख़तावार हूँ
अपनी गलतियों की सज़ा पा रहा हूँ
अपनी ही नहीं
अपने वालिद की इज्ज़त भी खा रहा हूँ

आखिरकार वो सपना ही निकला

आखिरकार वो सपना ही निकला
जिसे कल तक मैं सच्चाई समझता था
आज वह टुकड़ों में बिखरा पड़ा है
जिस शीशमहल में कल तक मैं रहता है
वे टुकड़े रह रहकर पैरों में चुभ रहे हैं
पर जाने क्यों दर्द का एहसास नहीं हो रहा है
मेरा सपना टूट चूका है
चाहकर भी इस पर विश्वास नहीं हो रहा है
दिल कह रहा है की जो हुआ जिसे मैंने देखा
वाही एक सपना है, बुरा सपना
सच्चाई ढकी है अब तक ये कि
वो अपना है मेरा अपना
मैं उलझन में हूँ कि
जाऊं किस ओर रुख किधर को करूँ
मन में जलते हुए सवालों के अंगारों को
छिपा किस ओर धरूँ
मुझे खुद भी ये नहीं पता कि
मेरा अगला क्या विचार है
शायद सही वक़्त आने का
अब मुझे इंतज़ार हैं

भले ही इस समय मैं

भले ही इस समय मैं
सिर्फ और सिर्फ तुममें ही खोकर रह गया हूँ
भले ही अभी मैं
तुम्हारी ही चर्चा करता हूँ
भले ही मुझे तुम्हारे अलावा
अभी कोई विषय नहीं मिलता
पर मैं इस सच को झुठला तो नहीं सकता
की दुनिया के कण कण में
एक न एक विषय समाहित है
उन सबसे घिरकर मैं अपने आप को
उनके प्रभाव से अछूता कैसे रख सकता हूँ
इसलिए मैं अब फिर मुड रहा हूँ
पर इस बार तुम्हें साथ लेकर
अबतक उन बीहड़ पथों में
मैं अकेला चलता था
कभी कभी भटक जाता था
अब जब तुम मेरी दिशा-निर्धारण कर रही हो
तब मैं पथ से विमुख कैसे हो सकता हूँ
तुम्हारा साथ पाकर मेरी चार आँखें हो गई हैं
अब मैं हर चीज़ को
और स्पष्ट देख सकता हूँ
तुम्हारा साथ पाकर मेरा व्यक्तित्व
निखर उठा है
तू पारस हो जिसने उसे छूकर
सोना बना दिया है
मैं अधूरा था
तुमने मुझे पूर्णता की ओर बढ़ा दिया है

जैसे-जैसे दिन घटते जा रहे हैं

जैसे-जैसे दिन घटते जा रहे हैं
तुम मेरे करीब और करीब आती जा रही हो
इन बचे हुए पलों का एक एक लम्हा
मैं तुम्हारे तसव्वुर में गुज़ारना चाहता हूँ
मुझे पता है तुम मेरे आस पास नहीं हो
फिर भी मुझे हमेशा तुम्हारी मौजूदगी का
एहसास होता रहता है
कल तुम तो मुझसे दूर हो सकती हो
पर तुम्हारी यादें हमेशा मेरे पास रहेगी
तुमसे दूर जाने से पहले
मैं अपने दिल को
तुम्हारी यादों से इस कदर भर लेना चाहता हूँ
की उसमे किसी और चीज़ के लिए जगह न हो
तुम तुम बस तुम ही उसमें रहो
मेरा हर एक पल तुम्हारा हो
मेरा हर एक ख़याल तुम्हारा हो
मेरे गम मेरी खुशियाँ
सब तुम्हारे सिर्फ तुम्हारे हों

रात हो आई है

रात हो आई है
बाहर मैदान में दूर तक चाँदनी छाई है
मैं तुम्हारे आगोश में लेटा हुआ हूँ
तुम्हारी साँसों की गर्मी मुझे
सर्द हवाओं से छुपा रही है
तुम्हारी आवाज़ कोई मीठा-सा गीत गुनगुना रही है
तुम मेरे बालों में ऊँगलियाँ फिरा रही हो
मेरे बिन बीते लम्हों के किस्से सुना रही हो
तुम्हारे तन की खुशबू
मेरे मन में समाती जा रही है
तुम्हारी चाँदी की घंटियों को मात देने वाली हँसी
अपने प्यार की बारिश में
मुझे भिगाती जा रही है
मैं आँख बंद किये
दुनिया के उस सबसे ख़ूबसूरत चेहरे को निहार रहा हूँ
जो इस वक़्त मेरे सामने है
मेरा रोम-रोम तुम्हारी मौजूदगी के एहसास से
प्रफुल्लित हुआ जा रहा है

सबकुछ एक हकीक़त-सा लगता है
जानता हूँ कि ये एक सपना है
पर आखिरकार ये मेरा अपना है
जानकार भी ये कि यह केवल एक सपना है
नहीं मेरा मन उदास है
क्योंकि इस सपने की हकीक़त पर
मुझे खुद से ज्यादा विश्वास है