Friday, April 16, 2010

रात हो आई है

रात हो आई है
बाहर मैदान में दूर तक चाँदनी छाई है
मैं तुम्हारे आगोश में लेटा हुआ हूँ
तुम्हारी साँसों की गर्मी मुझे
सर्द हवाओं से छुपा रही है
तुम्हारी आवाज़ कोई मीठा-सा गीत गुनगुना रही है
तुम मेरे बालों में ऊँगलियाँ फिरा रही हो
मेरे बिन बीते लम्हों के किस्से सुना रही हो
तुम्हारे तन की खुशबू
मेरे मन में समाती जा रही है
तुम्हारी चाँदी की घंटियों को मात देने वाली हँसी
अपने प्यार की बारिश में
मुझे भिगाती जा रही है
मैं आँख बंद किये
दुनिया के उस सबसे ख़ूबसूरत चेहरे को निहार रहा हूँ
जो इस वक़्त मेरे सामने है
मेरा रोम-रोम तुम्हारी मौजूदगी के एहसास से
प्रफुल्लित हुआ जा रहा है

सबकुछ एक हकीक़त-सा लगता है
जानता हूँ कि ये एक सपना है
पर आखिरकार ये मेरा अपना है
जानकार भी ये कि यह केवल एक सपना है
नहीं मेरा मन उदास है
क्योंकि इस सपने की हकीक़त पर
मुझे खुद से ज्यादा विश्वास है

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