Friday, April 16, 2010

भले ही इस समय मैं

भले ही इस समय मैं
सिर्फ और सिर्फ तुममें ही खोकर रह गया हूँ
भले ही अभी मैं
तुम्हारी ही चर्चा करता हूँ
भले ही मुझे तुम्हारे अलावा
अभी कोई विषय नहीं मिलता
पर मैं इस सच को झुठला तो नहीं सकता
की दुनिया के कण कण में
एक न एक विषय समाहित है
उन सबसे घिरकर मैं अपने आप को
उनके प्रभाव से अछूता कैसे रख सकता हूँ
इसलिए मैं अब फिर मुड रहा हूँ
पर इस बार तुम्हें साथ लेकर
अबतक उन बीहड़ पथों में
मैं अकेला चलता था
कभी कभी भटक जाता था
अब जब तुम मेरी दिशा-निर्धारण कर रही हो
तब मैं पथ से विमुख कैसे हो सकता हूँ
तुम्हारा साथ पाकर मेरी चार आँखें हो गई हैं
अब मैं हर चीज़ को
और स्पष्ट देख सकता हूँ
तुम्हारा साथ पाकर मेरा व्यक्तित्व
निखर उठा है
तू पारस हो जिसने उसे छूकर
सोना बना दिया है
मैं अधूरा था
तुमने मुझे पूर्णता की ओर बढ़ा दिया है

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