Sunday, April 18, 2010

ज़िंदगी गराँ है

ज़िंदगी गराँ है
क्यों गयास माँगते हों
लाखो गजंद फिर भी
ज़िन्दगी है
गज़ीनत है !
काफ़िर न बनो
ऐ मोमिन !
ख्वार न करो ज़िंदगी को
ये परवर दीगार की नेमत है

एक अनुभूति

एक अनुभूति 
अवचेत ह्रदय में संवेदना भरती सी 
एकाएक
आँखों के सामने आ गई 
निधियाँ लुटाती 
श्री बरसाती 
अंतर में छा गई 
हतप्रभ मैं 
चमत्कृत जग था 
कि इतनी सुन्दरता कहाँ छिपी थी 
किस मिट्टी के टीले के नीचे 
ऐसी मुग्धा मणि दबी थी 
उसके तेज से 
विश्व प्रकाशवान हो उठा 
उसे देखने मात्र से ही 
यह जीवन अर्थवान हो उठा   

तुम्हे सताता है डर जुदाई का

तुम्हे सताता है डर जुदाई का
ये की
ज़माना कही कर न दे अलग हमें
पर जरा सोंचो
क्या कभी फूल से खुशबू
सूरज से किरण
गंगा से पवित्रता
राधा से किशन
जुदा हो सकते हैं ?
वक्त के थपेड़ो में खो सकते हैं ?
अरे ! तुम मेरी साँस हो
मैं, तुम
और तुम मैं हो
बिना एक-दूजे के
हमारा वजूद ही कहाँ है
और जब वजूद ही नहीं
तब जुदाई का सवाल ही कहाँ है !

गुर्ग आशनाई के मारे हम

गुर्ग आशनाई के मारे हम
आशियाना क्या बनायेंगे !
चिराग जलने की कोशिश ग़र की
लौ से अपने ही घर जल जायेंगे

हर बड़ी आफ़त की अक्सर

हर बड़ी आफ़त की अक्सर
होती है छोटी शुरुआत
सीधी-सादी चीज़ों को उलझाती
एक छोटी-सी बात
अपने ही खिलाफत में खड़े हो गये
नये रिश्ते पुरानों से बड़े हो गये
पहले तो हँसाती थी अब है रुलाती
एक छोटी सी बात
मंज़िल तक चलने का वादा था साथ में
राह भी कर ली थी तय काफी
बात ही बात में
रास्ता तो दिखाया पहले अब है फंसाती
एक छोटी-सी बात
ख़ुशी के वो सारे पल
जाने कहाँ काफूर हो गयें
दिल के जो करीब थे पहले
जाने क्यों दूर हो गये
पतझड़ के बाग-सी मुरझाती
एक छोटी-सी बात

ज़िन्दगी ने मुझे बुलाया

ज़िन्दगी ने मुझे बुलाया
गले से लगे प्यार जताया
ढेरों रास्ते रख दिये सामने
हर राह में एक ख़ास बात थी
किसी में सुहाना दिन था
किसी में रंगीली रात थी
ज़िन्दगी की ऐसी दिलदारी देख
मैं हैरानी में पड़ गया
अचानक से इतनी खुशियाँ मिल गई
की खुशियों से ही डर गया
ग़म से याराना था मेरा
मुश्किल राहों ने गोद में खिलाया था
सच है उन राहों ने दी मुझे ठोकरें
पर ठोकरें खा सम्हलना भी सिखाया था
कैसे छोड़ता ऐसे अपनों का साथ
कैसे बेच देता 'सच्ची खुशियों' को
अनजाने सपनों के हाथ
ज़िन्दगी से खेला जुआ मैंने
लगा दी 'ज़िन्दगी' दांव में
छोड़ दी खुशियों की धूप
खड़ा रहा ग़मों की छाँव में
ऐ ग़मों,
प्यार से मुझे गले से लगा लो
देखो ये खुशियाँ डरा रही हैं
मुझे अपने साये में छुपा लो

काली अँधेरी रातों में अकेला बैठकर

काली अँधेरी रातों में अकेला बैठकर
तुम्हें याद करता हूँ
अपने रूठे हुए खुदा से
तुमसे मिलने की फ़रियाद करता हूँ
भीग जान चाहता हूँ
तुम्हारी नज़रों की रोशनी से
तुम नहीं हो तो ये आलम है
जलन महसूस होती है चाँदनी से
आ जाओ मेरे दामन में देखो
तुम्हारे लिये एक आशियाँ बनाया है
अपने जिगर का लहू देकर
उसके फूलों को सींचा है सजाया है

यूँ ही तुमसे मुलाक़ात हुई

यूँ ही तुमसे मुलाक़ात हुई
बस थोड़ी सी ही बात हुई
जाने क्यों तलाश की शुरुआत हुई
तुममे सपनों वाले साथी की
जाने तुममे क्या ख़ास दिखा
तनहा दिल के कोई पास दिखा
एक मुद्दत से मन प्यासा था
तुमने ले ली जगह है साक़ी की
सोचो तो क्या ये जादू है
मुर्दा दिल आज बेक़ाबू है
दीपक, भरा तेल से, था बेक़ाबू पड़ा
तुमने कर दी कमी पूरी बाती की

कहीं दूर से तुम बुलाती हो मुझे

कहीं दूर से तुम बुलाती हो मुझे
आकर के सपनों में
रातों को जगती हो मुझे
कभी एक खनकती आहात
कभी एक चमकती-सी झलक
आ जाओ न सामने
क्यों सताती हो मुझे
ख्वाबों में भी अब तक ठीक से
देखा नहीं तुमको
अभी तक बिखरी-बिखरी है तस्वीर तुम्हारी
दीदार का इंतज़ार कर-कर थक गया हूँ
नज़रे-इनायत कर दो
राहों में बिछी हैं नज़रें बेचारी
अच्छा चलो ये तो बताओ
क्या तुमको भी मुझसे प्यार है
मुझसे मिलने के लिये
क्या तुम्हारा दिल भी बेक़रार है
....क्यों पूछता हूँ ये सब
जब तुम हो नहीं कहीं
कल्पना से बात करने के
कोई मायने नहीं
ग़र हो तो बोलो सामने
क्यों आती नहीं मेरे
कोई तो तुम जवाब दो यों चुप नहीं रहो
दिल को ज़रा सुकून दो
तोड़ो मेरी उलझनों के घेरे

दोस्तों के कहकहों के बीच

दोस्तों के कहकहों के बीच
जब कभी तुम्हारा चर्चा आता है
तो अचानक से दिल में एक नफ़ीर बजती है
बातचीत के सिलसिलों में
मशगूल होते हैं वो
और मेरे बुतकदे में
तुम्हारी तस्वीर चमकती है
अचानक ही महफ़िल में होकर भी मैं
अपना एक अलग आशियाँ बना लेता हूँ
रोशन करने बाबत उसको
तुम्हारी यादों का दिया जला लेता हूँ
मेरे दोस्त कसते हैं फ़िकरे
उन्हें पता नहीं चलता कि मैं
सोता हूँ या जगता हूँ
उन फ़िकरों से बचने के लिए ही मैं
महफ़िल में तुम्हारे चर्चे से बचता हूँ

आज दिल में दिन भर

आज दिल में दिन भर
तुम्हारा ही ख़याल रहा
मन में उमड़ता-घुमड़ता
तुम्हारा ही एक सवाल रहा
खोकर के कुछ पाया तुमको
या पाकर के खो डाला
क्या कहूं
कि फूटी है किस्मत मेरी
या कि, मैं हूँ किस्मतवाला
मैं 'ख्वाबों में' भी 'ख्वाबों में'
तुमको ही देखा करता हूँ
तुम हो जाओ न दूर कहीं
इसलिए जागने से डरता हूँ

कल रात को बरसा था पानी

कल रात को बरसा था पानी
भीगी हुई सुबह है
ख्वाब में तो तुम आये ही थे
अब खिलवत में भी आ जाओ
एक मुद्दत गुज़र गई है
फिर अब ये दिल क्यों मचलता है
तुम प्यार से छूकर के आँखों से
इस पागल को बहला जाओ
गूंजते हैं कानों में जाने क्यों
लफ्ज़ जो निकले थे होंठों से तुम्हारे
आओ, आकर उन लफ़्ज़ों को
गाकर गीत बना जाओ
रूठा है मेरा खुदा मुझसे
अब दिन नहीं कटते हैं मुहर्रम के
आओ, सिज़दा सिखा इस काफ़िर को
उसके रमजान की नजामत कर जाओ

खेलते थे साथ जब हम, तुम हमेशा मार खाते

खेलते थे साथ जब हम, तुम हमेशा मार खाते
जीतता था मैं हमेशा और तुम हार जाते
मार खा और हार कर जब आँखों से आंसू तुम बहाते
डर कर उन्हें मैं पोंछता था
खेलते लड़ते झगड़ते हम बड़े होते गये
हर झड़प के बाद फिर से मिलकर खड़े होते गये
जब कभी थे दूर जाते देते तोहफे एक दुसरे को
चहक जाते पाकर एक मीठी गोली भी
ये याद आता है हमेशा
तुम विचारों से बड़े थे तुम बड़े हो गये जल्दी
मैं रोज उलझन नई लेकर था तुम्हारे पास आता
प्यार से सुलझाते उन्हें तुम
ये याद आता है हमेशा
होता कभी मायूस मैं तो खोज लाते थे ख़ुशी जाने कहाँ से
प्रथमतः परिचय तुम्हीं ने था कराया प्रेम के कोमल जहाँ से
प्यार की बारिश में तुमने फिर तो मुझको यों भिगोया
मैं अब तलक न सूख पाया
ये याद आता है हमेशा

कानों को बहरा करते इस शोर से

कानों को बहरा करते इस शोर से
अब जी भर गया है
तुम कह दो चंद लफ्ज़ तो
कहानी बन जाये
करतब हर पल नये होते हैं
फिर भी उदास है दुनिया
बस एक नज़र जो देख लो
करतब ज़माने के तुम
तो ये दुनिया दीवानी बन जाये
हर नये पल में दुनिया
दर्दों का घर बन रही है
छू दो इसे हाथों से अपने
ये फिर इ पुराणी बन जाये
तनहा गुज़र रही है
हर शाम ज़िन्दगी की
आ जाओ तुम्हारी खुशबू से
ये शाम सुहानी बन जाये

कमल की कोमलता

कमल की कोमलता
गंगाजल की पवित्रता
सूर्य का तेज
चन्द्रमा की शीतलता
नदी का प्रवाह
पवन का बहाव
रजनीगंधा की सुगंध
माँ की ममता
नवजात बच्चे की मासूमियत
गाय की सरलता
हिरण की चपलता
वट वृक्ष की स्थिरता
इन सबको मिला कर
एक मूरत बनी
और जब उसमें
मेरे प्राण डाले गए
तब तुम बनी !

सोचता हूँ कैसा वो सफ़र होगा

सोचता हूँ कैसा वो सफ़र होगा
एक लम्बी सी डगर होगी
और तू मेरा हमसफ़र होगा
पथरीला रास्ता
बिछ जायेगा कमसिन फूलों से
तेरी मोहब्बत का
जादुई ये असर होगा
तन्हाई लगेगी बदलने महफ़िलों में
खुशियों का नूर तुझको नज़र होगा
रहेंगे एक-दूजे की बाहों में
ता-उम्र हम-तुम
हर लम्हा ज़िन्दगी का अपनी
यूं ही प्यार से भीगा हुआ बसर होगा

कितना कोमल एहसास है तुम्हारा

कितना कोमल एहसास है तुम्हारा
इसका एहसास तब होता है
जब तुम पास नहीं होती
तब जीवन की सारी कठोरता 
विकराल रूप ले सामने आती है
जिसका अँधियारा इतना भयंकर
कि उसमें दृष्टि शून्य हो जाती है 
तुम्हारा महत्त्व 
तुम्हारे न होने पर ही ज्ञात होता है
जब तुम समीप होती हो
मैं स्थिर होता हूँ
विषमताएँ जितनी भी बढ़ जायें 
मैं साहस न खोता हूँ 
तुम्हारे दूर जाते ही 
मैं जैसे असहाय हो जाता हूँ
बाधाएं मुझे अधीर बना देती हैं
मेरा शक्ति पुंज बुझ जाता है
मेरा तेज मंद पड़ जाता है
तुम मेरी अभयता का स्त्रोत हो
प्रेम और दृढ विश्वास से
कर देती मुझे ओतप्रोत हो
अतः जब भी युद्ध की घड़ी आये
प्रिय! अपने हाथों में मुझे
तुम्हारा हाथ चाहिये 
जीवन की इस लम्बी बीहड़ यात्रा में
संगिनी! मुझे तुम्हारा साथ चाहिये 

सृजन अभी होने को था

सृजन अभी होने को था
की प्रलय प्रखर हो बरस गया
जिसने सागर को जन्म दिया
खुद दो बूंदों को तरस गया
प्रकृति नियम से वशीभूत है
हर उदभव पर विनाश छिपा
हर जीवन के मनस पटल पर
है मृत्यु का श्लोक लिखा
यदि जन्म लिया तो सृजन करो
इस धरती में श्रृंगार भरो
पीड़ा से प्राण निकलते हैं
इस धरती के, सब त्रास हरो
है समय बहुत ही अल्प
कल्प का तरु न सदा हरा रहता
जिसने क्षण, कण का मान न माना
उसका भाग्य न कभी खरा रहता

तेरी चमकती हुई आँखों में मुझे

तेरी चमकती हुई आँखों में मुझे
एक धुंधली-सी तस्वीर नज़र आती है
देखे हैं रातों को जगकर जो मैंने
उन ख्वाबों की ताबीर नज़र आती है
जब भी उलझता हूँ कहीं
और राह कोई मिलती नहीं
हर उलझनों से निकलने की
तदबीर नज़र आती है
गिरने को होता हूँ खा के ठोकरें
जब चोट लगती है मुझे
हर ठोकरें सम्हाल ले
वो जंजीर नज़र आती है
फिरता हूँ जब अंधेरों में
खो जाते सारे रास्ते
तेर दमकते नूर में
मेरी तकदीर नज़र आती है
उठते हैं जब कदम गलत
ईमान से नाता जब टूटता
तेरी टेढ़ी भौंहों सी तलवार
सीने को जो दे चीर, नज़र आती है
लड़ने का मुझमें जो हौसला
हसरत है जो ये जीत की
इस ताक़त के पीछे मुझको तो
तेरी खुशबू से भरी हुई समीर नज़र आती है

रंग गया हर कोई आज मस्ती के रंग में

रंग गया हर कोई आज मस्ती के रंग में
बदल गयी चालें सबकी, रमे सब अपने ही ढंग में
कल थी जली बुराई आज अच्छाई कि धूम है
निखरे निखरे लगते सारे चेहरे मासूम हैं
बसंती हवा झूम-झूम गीत गा रही है
सोंधी-सोंधी खुशबू दिल की हलचल बढ़ा रही हैं
मिट गई सब दूरियाँ बरसता सब दूर प्यार है
मौसम ये ऐसा कि अन्दर बाहर हर जगह बहार है
कहीं महकती भाँग तो कहीं बहकती फाग
मजबूर हो गए झूमने को ऐसा है ये राग
भूलें गंदी राजनीति भूलें गंदे माहौल को
कर दें धराशायी अमन के दुश्मनों की चाल को
आओ इस होली में हम सब प्यार का रंग लगायें
ऐसा जो सदियों तक रिश्तों को रंगीन बनाएं

जाने क्यों सब कुछ रुका हुआ-सा है

जाने क्यों सब कुछ रुका हुआ-सा है
आज आसमान दिखता थोडा झुका झुका सा है
फैला हुआ है हर दिशा में खामोश अँधेरा
खुशियों का दिया शायद बुझा-बुझा-सा है
आज फिर दिल तेरे तसव्वुर को तरसता है
आज फिर दिल तेरी याद में सुलगता-सा है
आज बड़ी देर से सोकर जागा हूँ मैं
आँखों में रात का सपना अब तक कसकता-सा है
सोचा है तेरी याद में हम भी ताजमहल बनायेंगे
तेरी खुशबू से मेरा आलम अब तक महकता-सा है
जाना कहाँ था और कहाँ जा रहा हूँ मैं
मैं या तो फिर ये रस्ता बहकता सा है