Monday, April 26, 2010

अनवरत

अनवरत
सूरज का आना
रोशनी फैलाना
अनवरत
चाँद का चमकना
तारों का दमकना
अनवरत
पवन का बहाव
अपनों से मन का जुड़ाव
अनवरत
धरती का घूमना
लहरों का तट को चूमना
प्रकृति का दान है
अनवरत
जीवन का गान है

रात बीती

रात बीती
हुआ सवेरा
सूरज आया लेकर अपना डेरा
डेरे में उसके अजब चीज़ों का कूला
देख उन्हें मन मेरा ख़ुशी से फूला
अंधियारे को मिटाने
छम छम करती आई अंशुला
फूल खिल गए
किरणों को गर्मी से
बुतकदे पिघल गए
खुशबू भरी बयार चलने लगी
सुबह की लाली
सुनहरी रोशनी में ढलने लगी
कल का थका हुआ मुसाफिर
ताज़ा हो मंजिल की तरफ चला
ताजगी की चाबी से
मंजिल का ताला खुला
मंजिल की राह दिखाने आई
अंशुला

कविता दे देती है

कविता दे देती है
खूबसूरती को एक ज़बान
कविता बना देती है
मूक पत्थर को इंसान
कविता छूकर बना देती है
मिटटी को सोना
कविताओं में समा जाते भाव सारे
हँसाना हो या रोना
कविता नहीं
महज शब्दों का प्रसार है
कोमल भावनाओं का
कविता ही एक हथियार है
कविता ही तो है ये जीवन
मृत्यु का भी कविता ही श्रृंगार है
कविता की सीमा नहीं कोई
इसका विस्तार अपार है

माना, नहीं तू दुनिया में

माना, नहीं तू दुनिया में
सबसे हसीं
माना,
तेरा चेहरा नहीं
ज़माने में सबसे ज़हीन
मेरा नहीं कोई इख्तियार है
क्योंकि उनसे नहीं
तुमसे मुझे प्यार है

अक्षर जब शब्द न बन पायें

अक्षर जब शब्द न बन पायें
शब्द जब आपस में ही उलझ जाएँ
जब कोई बात भीतर ही घुट जाए
आँख तब जुबां का काम करती हैं
खिलते मुरझाते रोते मुस्कुराते
दिल की हकीक़त को बयान करती हैं

मेरी आँखों के सामने

मेरी आँखों के सामने
गुज़रा ज़माना बैठा है
जिस्म की सिलवटों से बयाँ होता
एक फ़साना बैठा है
फ़साना
जो कल तक हलचलों से भरा था
हरा था
जो नदिया की कलकल धारा था
जिसने कल को सँवारा था
आज
फर्श पर गिरे पानी-सा हो गया है
बहुत थक गया था
जैसे अब सो गया है
धीरे धीरे उसका फैलाव
सिकुड़ता जा रहा है
उसका असीमित विस्तार
अपने में ही समा रहा है
पर उस ठहरे हुए पानी में अब भी
थोड़ी-सी हलचल बाकी है
होंठों के चौड़ा होने को
बस इतना सा कारण काफी है

जाड़ा यूँ लगता है जैसे

जाड़ा
यूँ लगता है जैसे
हर जगह छा गया है
कँपाता, हड्डियों को गलाता
अंतर में समाया गया है
रिश्तों में भी मौसम होते हैं
बदलते हैं मिजाज़ गुज़रते वक़्त के साथ
कल तक उनमें थी बहार
था प्यार
पर ठंडक ने वहाँ भी घर कर लिया है
अपने दम से
बाहों को सिकुड़ने पर
मजबूर कर दिया है

तमन्नाएं दिल में आती क्यों है

तमन्नाएं दिल में आती क्यों है
आकर बेचारे को सताती क्यों है
रंजो गम कि महफ़िल में
वैसे भी अकेला है
बर्फीली आग से इसे जलाती क्यों है

गुलशन में देख गुल-चहर

गुलशन में देख गुल-चहर
दिल गुल-ए-गुलज़ार हो गया
मैं गुलफाम का अपनी
गुल फिशानी बयाँ करूँ तो करूँ कैसे
वक्त ही कहाँ है
देखो, गुरूब का करार हो गया