Monday, April 26, 2010

रात बीती

रात बीती
हुआ सवेरा
सूरज आया लेकर अपना डेरा
डेरे में उसके अजब चीज़ों का कूला
देख उन्हें मन मेरा ख़ुशी से फूला
अंधियारे को मिटाने
छम छम करती आई अंशुला
फूल खिल गए
किरणों को गर्मी से
बुतकदे पिघल गए
खुशबू भरी बयार चलने लगी
सुबह की लाली
सुनहरी रोशनी में ढलने लगी
कल का थका हुआ मुसाफिर
ताज़ा हो मंजिल की तरफ चला
ताजगी की चाबी से
मंजिल का ताला खुला
मंजिल की राह दिखाने आई
अंशुला

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