Sunday, April 18, 2010

जाने क्यों सब कुछ रुका हुआ-सा है

जाने क्यों सब कुछ रुका हुआ-सा है
आज आसमान दिखता थोडा झुका झुका सा है
फैला हुआ है हर दिशा में खामोश अँधेरा
खुशियों का दिया शायद बुझा-बुझा-सा है
आज फिर दिल तेरे तसव्वुर को तरसता है
आज फिर दिल तेरी याद में सुलगता-सा है
आज बड़ी देर से सोकर जागा हूँ मैं
आँखों में रात का सपना अब तक कसकता-सा है
सोचा है तेरी याद में हम भी ताजमहल बनायेंगे
तेरी खुशबू से मेरा आलम अब तक महकता-सा है
जाना कहाँ था और कहाँ जा रहा हूँ मैं
मैं या तो फिर ये रस्ता बहकता सा है

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