सृजन अभी होने को था
की प्रलय प्रखर हो बरस गया
जिसने सागर को जन्म दिया
खुद दो बूंदों को तरस गया
प्रकृति नियम से वशीभूत है
हर उदभव पर विनाश छिपा
हर जीवन के मनस पटल पर
है मृत्यु का श्लोक लिखा
यदि जन्म लिया तो सृजन करो
इस धरती में श्रृंगार भरो
पीड़ा से प्राण निकलते हैं
इस धरती के, सब त्रास हरो
है समय बहुत ही अल्प
कल्प का तरु न सदा हरा रहता
जिसने क्षण, कण का मान न माना
उसका भाग्य न कभी खरा रहता
Sunday, April 18, 2010
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