Sunday, April 18, 2010

सृजन अभी होने को था

सृजन अभी होने को था
की प्रलय प्रखर हो बरस गया
जिसने सागर को जन्म दिया
खुद दो बूंदों को तरस गया
प्रकृति नियम से वशीभूत है
हर उदभव पर विनाश छिपा
हर जीवन के मनस पटल पर
है मृत्यु का श्लोक लिखा
यदि जन्म लिया तो सृजन करो
इस धरती में श्रृंगार भरो
पीड़ा से प्राण निकलते हैं
इस धरती के, सब त्रास हरो
है समय बहुत ही अल्प
कल्प का तरु न सदा हरा रहता
जिसने क्षण, कण का मान न माना
उसका भाग्य न कभी खरा रहता

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