Sunday, April 18, 2010

ज़िंदगी गराँ है

ज़िंदगी गराँ है
क्यों गयास माँगते हों
लाखो गजंद फिर भी
ज़िन्दगी है
गज़ीनत है !
काफ़िर न बनो
ऐ मोमिन !
ख्वार न करो ज़िंदगी को
ये परवर दीगार की नेमत है

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