क्यों गयास माँगते हों
लाखो गजंद फिर भी
ज़िन्दगी है
गज़ीनत है !
काफ़िर न बनो
ऐ मोमिन !
ख्वार न करो ज़िंदगी को
ये परवर दीगार की नेमत है
"यह ब्लॉग सिर्फ कुछ कविताओं का संग्रह मात्र ही नहीं है. यह संग्रह है मेरे सबसे अजीज़ दोस्त धर्मेन्द्र तिवारी की भावनाओं का. मैं हमेशा से ही उसकी कविताओं को एक किताब की शक्ल देना चाहता था पर असफल रहा. पर इस ब्लॉग के ज़रिये मैं उसके अन्दर छुपे एक महान लेखक को लोगो के सामने लाना चाहता हूँ. इन कविताओं के पीछे जाने कितने ही यादगार लम्हें छिपे हुए हैं जो कभी सच हुआ करते थे. अगर इस संग्रह की कोई भी कविता आपके दिल और मन को छू जाए तो कृपया अपनी विशेष टिप्पणी(comments)देने से न कतराएं" -- त्रिलोक सूर्यवंशी
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