Sunday, April 18, 2010

कितना कोमल एहसास है तुम्हारा

कितना कोमल एहसास है तुम्हारा
इसका एहसास तब होता है
जब तुम पास नहीं होती
तब जीवन की सारी कठोरता 
विकराल रूप ले सामने आती है
जिसका अँधियारा इतना भयंकर
कि उसमें दृष्टि शून्य हो जाती है 
तुम्हारा महत्त्व 
तुम्हारे न होने पर ही ज्ञात होता है
जब तुम समीप होती हो
मैं स्थिर होता हूँ
विषमताएँ जितनी भी बढ़ जायें 
मैं साहस न खोता हूँ 
तुम्हारे दूर जाते ही 
मैं जैसे असहाय हो जाता हूँ
बाधाएं मुझे अधीर बना देती हैं
मेरा शक्ति पुंज बुझ जाता है
मेरा तेज मंद पड़ जाता है
तुम मेरी अभयता का स्त्रोत हो
प्रेम और दृढ विश्वास से
कर देती मुझे ओतप्रोत हो
अतः जब भी युद्ध की घड़ी आये
प्रिय! अपने हाथों में मुझे
तुम्हारा हाथ चाहिये 
जीवन की इस लम्बी बीहड़ यात्रा में
संगिनी! मुझे तुम्हारा साथ चाहिये 

No comments:

Post a Comment