तेरी चमकती हुई आँखों में मुझे
एक धुंधली-सी तस्वीर नज़र आती है
देखे हैं रातों को जगकर जो मैंने
उन ख्वाबों की ताबीर नज़र आती है
जब भी उलझता हूँ कहीं
और राह कोई मिलती नहीं
हर उलझनों से निकलने की
तदबीर नज़र आती है
गिरने को होता हूँ खा के ठोकरें
जब चोट लगती है मुझे
हर ठोकरें सम्हाल ले
वो जंजीर नज़र आती है
फिरता हूँ जब अंधेरों में
खो जाते सारे रास्ते
तेर दमकते नूर में
मेरी तकदीर नज़र आती है
उठते हैं जब कदम गलत
ईमान से नाता जब टूटता
तेरी टेढ़ी भौंहों सी तलवार
सीने को जो दे चीर, नज़र आती है
लड़ने का मुझमें जो हौसला
हसरत है जो ये जीत की
इस ताक़त के पीछे मुझको तो
तेरी खुशबू से भरी हुई समीर नज़र आती है
Sunday, April 18, 2010
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