Friday, April 16, 2010

एक जलजला आया

एक जलजला आया
सब कुछ मिटा गया
जो बचा था वो बस मलबा था
लाशें थी
लाशें मकानों की लाशें इंसानों की
लाली चढ़ी थी खून की ज़मीन पर
ज़िन्दगी टंगी थी वक़्त की संगीन पर
लाशों के क्रिया कर्म का वक़्त आया
बचे लोगों ने गड्ढे खोदे आग जलाई
अपना धर्म निभाया
पर कुछ लोग उन्ही गड्ढों में
अपने घरों की नींव धरने लगे
चिता की गरमाहट से
अपने कमरे भरने लगे
क्या हमारा खून इतना ठंडा हो गया है
की उसके उबाल के लिए
चिता की आग ज़रूरी है
भाई को भाई का गला काटने में भी हिचक नहीं
ये मानव के किस गुण की छुरी है

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