एक जलजला आया
सब कुछ मिटा गया
जो बचा था वो बस मलबा था
लाशें थी
लाशें मकानों की लाशें इंसानों की
लाली चढ़ी थी खून की ज़मीन पर
ज़िन्दगी टंगी थी वक़्त की संगीन पर
लाशों के क्रिया कर्म का वक़्त आया
बचे लोगों ने गड्ढे खोदे आग जलाई
अपना धर्म निभाया
पर कुछ लोग उन्ही गड्ढों में
अपने घरों की नींव धरने लगे
चिता की गरमाहट से
अपने कमरे भरने लगे
क्या हमारा खून इतना ठंडा हो गया है
की उसके उबाल के लिए
चिता की आग ज़रूरी है
भाई को भाई का गला काटने में भी हिचक नहीं
ये मानव के किस गुण की छुरी है
Friday, April 16, 2010
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