जब से तुम्हारे नाम के एहसास ने
मेरे दिल में घर कर लिया है
तब से इसने एक अनजानी सी ख़ुशी से
मेरे तन मन को भर दिया है
तुम्हारा मासूमियत में डूबा हुआ चेहरा
मुझे तुम्हारी यादों में डुबा देता है
तुम्हारा वो खूबसूरत मसलफा
मेरे हर गम को भुला देता है
तुम्हारी बातों की वो संजीदगी
मुझे अन्दर तक छू जाती है
तुम्हारी कोमल हँसी की खनक
मुझमें नूर जगा जाती है
क्यों तुमसे मिलने की ललक
दिन ब दिन बढ़ती जा रही है
मेरी हर बात हर ख्याल से
अब बस तुम्हारी ही खुशबू आ रही है
अनजान हूँ इस एहसास को क्या नाम दूं
जब मेरा एहसास ही तुम बन गई हो
कहीं ये प्यार तो नहीं
जो तुम मेरे दिलो दिमाग में जम गई हो
Saturday, April 17, 2010
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