पास हो तुम दूर भी
चेहरा रहता है हमेशा आँखों के सामने
पर बढ़ता हूँ जब भी मैं हाथों को थामने
दूरी कभी घटती नहीं
खुशनसीब हूँ मैं मजबूर भी
पास हो तुम दूर भी
सोचा नहीं था ये की आ जायेंगे यहाँ तक
छा जाओगी तुम्हीं बस धरती से आसमाँ तक
पर जाएँ अब किधर कि
राह कोई मिलती नहीं
कुछ बंधन भी हैं दस्तूर भी
पास हो तुम दूर भी
Saturday, April 17, 2010
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