Tuesday, April 13, 2010

कभी कभी सोचता हूँ

कभी कभी सोचता हूँ
कि तुमने मुझे क्या से क्या बना दिया है
कल तक मेरी कविताओं का रूप क्या था
और आज क्या है
कल तक मैं अपने चारों ओर नज़रें घुमाता था
पर आज तुममें ही खो कर रह गया हूँ
मेरी रचनाओं का आदि और अंत
तुममें ही सिमटकर रह गया है
तुम ही उनकी प्रेरणा बन गयी हो
मेरी सोचों मेरे ख्यालों में केवल
तुम्हारी ही एक तस्वीर दिखती है
मेरी नज़र हर नज़ारे में
बस तुम्हे खोजती है
समझ नहीं पाता इन सब को क्या नाम दूँ
किस नतीजे पर पहुँचूँ
कि मेरे लिए तुम कौन हो
क्या सिर्फ एक नाम
जो मुझे खुशबू से भर देता है ?

No comments:

Post a Comment