Tuesday, April 13, 2010

जब मैं अपने कर्तव्य पथ पर चलते चलते

जब मैं अपने कर्तव्य पथ पर चलते चलते
थक जाता हूँ
तब तुम्हारा स्नेहिल आलोक ही
मुझे नई ऊर्जा देता है
जब ऊब की चादर छाने लगती है
तब तुम्हारी चमकती आँखें
एक शबनमी ताजगी लेकर आती है
मैं अपने लक्ष्य की ओर
तुम्हारा हाथ थामकर
तुम्हे ही पाने के लिए बढ़ रहा हूँ
जब तक तुम्हारा हाथ मेरे हाथों में है
तब तक विश्वास है
कि मेरे कदम डगमगायेंगे नहीं
क्योंकि तुम मेरी शक्ति का वो श्रोत हो
जो न केवल मुझे ऊर्जावान बनता है
बल्कि मेरे अन्तः के समस्त
अवसादक भार को भी
सोख लेता है

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