जब मैं अपने कर्तव्य पथ पर चलते चलते
थक जाता हूँ
तब तुम्हारा स्नेहिल आलोक ही
मुझे नई ऊर्जा देता है
जब ऊब की चादर छाने लगती है
तब तुम्हारी चमकती आँखें
एक शबनमी ताजगी लेकर आती है
मैं अपने लक्ष्य की ओर
तुम्हारा हाथ थामकर
तुम्हे ही पाने के लिए बढ़ रहा हूँ
जब तक तुम्हारा हाथ मेरे हाथों में है
तब तक विश्वास है
कि मेरे कदम डगमगायेंगे नहीं
क्योंकि तुम मेरी शक्ति का वो श्रोत हो
जो न केवल मुझे ऊर्जावान बनता है
बल्कि मेरे अन्तः के समस्त
अवसादक भार को भी
सोख लेता है
No comments:
Post a Comment