देखा है मैंने अपने साए को भी
खुद से आगे निकलते और
ये भी देखा है कि अँधेरा होने पर
वो कैसे काफूर हो जाता है
पर जाने तुम पर ये भरोसा क्यों है
कि जब कभी मैं लड़खड़ाउंगा
तुम्हारा हाथ मुझे थामने को ज़रूर बढेगा
जब कभी मैं अँधेरे में खोने लगूंगा
तुम मुझ में रौशनी भर दोगे
जब कभी मैं खुद से बेकाबू होऊँगा
तुम मुझे बिखरने न दोगे
खुद पर तो मुझे यकीन नहीं
पर जाने क्यों तुम पर मुझे भरोसा है
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