Friday, April 9, 2010

है देश उसका क्या

है देश उसका क्या
यही उसको नहीं पता
इसमें नहीं है कुछ भी पर
उसकी कोई खता
सब भाप हो गए हैं
थे जीवन में जितने रस
जीना है उसको कैसे भी
वह जानता है बस
है क्या सही क्या है गलत
उसको नहीं ये ज्ञान
तिल-तिल के जैसे मर गया
उसके निज सम्मान
उसकी कहानी बस यही
जिंदा है अभी वो
वह जानता है शायद उसे
कभी कफ़न नसीब न हो
फिर भी है खुश जाने वो क्यों
है पास उसके क्या
उसने तो डाली बेच
सारी शर्म और हया
लड़ता रहा ताउम्र वो
किसी और से नहीं
दुश्मन खुद का खुद है वही
जिसे वह देखता नहीं

No comments:

Post a Comment