Friday, April 9, 2010

मुस्कुराता हुआ आशियाँ था मेरा

मुस्कुराता हुआ आशियाँ था मेरा
था बहारों का मौसम अनोखा वहां
फूल ही फूल चारो तरफ थे खिले
खूबसूरत था ऐसा जो मिलता कहाँ
आग किसने लगा दी है इसमें मगर
जलने लगा क्यूँ गुलिस्तां मेरा
फूल सारे के सारे झुलसने लगे
इन हवाओं का रुख अब किधर को फिरा
इक दूजे के लिए ख़ून बहता था कल
आज फिर खून कि प्यास क्यूँ है बड़ी
क्या मोहब्बत से थे लोग सब खुश नहीं
जो आज नफरत है अपने परवां चढ़ी
ज़िन्दगी प्यार देने का बस नाम है
प्यार से तो बड़ा न कोई काम है
आज बदला है कैसे नज़ारा मगर
प्यार मरता यहाँ अब सरेआम है

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