Friday, April 9, 2010

कुछ करते करते कभी कभी

कुछ करते करते कभी कभी
जी उचट सा जाता है
फिर यादों का साया बाहों में
गाने लगती है याद
गीत कोई प्यारा सा
रुक जाता है वह मन जो
फिरता मारा मारा सा
तभी कर्तव्य जताने लगता
बोध है अपना
शीशे के जैसा टूट है जाता
मेरा सपना
फिर देने लगते दस्तक प्रश्न सभी
मेरे मन के दर पर
नीरसता की चादर छा जाती
मेरे आँगन पर

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