Saturday, April 10, 2010

मैं साफ़ देख रहा हूँ उस दिन को

मैं साफ़ देख रहा हूँ उस दिन को
जब मैं सूली पर टंगा होऊँगा
लोग मुझ पर हँस रहे होंगे
पत्थरों से मेरा स्वागत कर रहे होंगे
कल तक मैं खुश था
क्यों कल से अनजान था
पर आज उदासी और परेशानी ही
मेरा चेहरा बन गई है
कल का जानना
सचमुच ही बड़ा दुखदायी है
तभी तो वो पीड़ा जो मेरे दिल में समाई है
रह रह के छलक आती है
आँखों में आँसू ही नहीं है
तभी तो वह बह नहीं पाती है
वो खुशियाँ वो ठहाके वो मुस्कराहट
अब दिल में नश्तर की तरह चुभती है
यह चुभन मुझे चीरती जा रही है
मैं कट रहा हूँ मैं मिट रहा हूँ
मेरी सांसें कीलों में ठुक कर
जड़ हो गई हैं
मेरी आँखें बंद हो रही है
अँधेरा छा रहा है



No comments:

Post a Comment