कल बहुत देर तक की
पत्थरों से बातें हमने
उनमें तुम्हारा ही चेहरा छुपा था
सर झुकाये गये दिल के मंदिर में
दरवाजे पर तुम्हारा नाम खुदा था
मूरत देखे बिना ही लौट आये
ज़रुरत ही महसूस न हुई
कल्पनाओं ने उसे एक कली बना दिया
अनखिली अनछुई
जिसकी खुशबू से महका हुआ
दिल का गुलिस्तान है
नाम क्या दें इस एहसास को
हैरानी है,
हम इससे अनजान है !
its gud among the other so far...
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