Friday, April 30, 2010

कल बहुत देर तक की

कल बहुत देर तक की
पत्थरों से बातें हमने
उनमें तुम्हारा ही चेहरा छुपा था
सर झुकाये गये दिल के मंदिर में
दरवाजे पर तुम्हारा नाम खुदा था
मूरत देखे बिना ही लौट आये
ज़रुरत ही महसूस न हुई
कल्पनाओं ने उसे एक कली बना दिया
अनखिली अनछुई 
जिसकी खुशबू से महका हुआ
दिल का गुलिस्तान है
नाम क्या दें इस एहसास को
हैरानी है,
हम इससे अनजान है !

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