Friday, April 30, 2010

जग परेशान था

जग परेशान था
वक़्त बेज़ार था
पर मैं खुद में खुश था
दिल मुस्कुराता था
पर मैं बाहर से चुप था
मुस्कुराहट की लाली
बदन पर खिल गयी थी
ऐसी क्या चीज़ थी
मुझको जो मिल गयी थी
ये सोचकर ज़माना हैरान था
रंग फिजाओं में सारे
जैसे घुल गए थे
दुनिया क्यों न जले
मुझको तुम जो मिल गए थे

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