Friday, April 30, 2010

मैं अब खुद क्या कहूँ

मैं अब खुद क्या कहूँ
कवि !
तुमने तो
मेरे भीतर के सारे भाव चुरा लिए
जिन शब्दों के आभूषण पहना
मैं अपने भावों को सजाना चाहता था
इन्हें तुमने पहले ही
जग के पटल पर चस्पा कर दिया
मैंने जब ये सब देखा
तब अंतर में एक ही प्रश्न उभरा
तुम तो कवि थे
चोर कब से हो गये ?

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