उड़ चुकी है नींद अब ख्वाबो के जोर से,
एक आवाज़ आती है जाने किस ओर से!
खिल रही थी धुप अब तक आसमानों में,
घिर गए सहसा ये बदल घनघोर से!
फिर रहे थे लेकर दुनिया बाज़ुओ में हम,
आज पर पड़ने लगे है कमज़ोर से!
चीख को कैसे सुरों का नाम दे दू अब,
महफिले सजती है मरघट के छोर से!
हाथ में अंगार लेकर रौशनी की है,
कुछ मशाले आ रही है उस मोड़ से!
Friday, April 30, 2010
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