Friday, April 30, 2010

उड़ चुकी है नींद अब ख्वाबो के जोर से

उड़ चुकी है नींद अब ख्वाबो के जोर से,
एक आवाज़ आती है जाने किस ओर से!
खिल रही थी धुप अब तक आसमानों में,
घिर गए सहसा ये बदल घनघोर से!
फिर रहे थे लेकर दुनिया बाज़ुओ में हम,
आज पर पड़ने लगे है कमज़ोर से!
चीख को कैसे सुरों का नाम दे दू अब,
महफिले सजती है मरघट के छोर से!
हाथ में अंगार लेकर रौशनी की है,
कुछ मशाले आ रही है उस मोड़ से!

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