Friday, April 30, 2010

ये सच की तुम दूर हो

ये सच की तुम दूर हो
सच नहीं है
मैं हर पल तुम्हें अपनी साँसों के पास पाता हूँ
हाथ बढाऊँ तो छू ही लूं
पर ये सोचकर ठिठक जाता हूँ
छू दूं कहीं तुम मैली न हो जाओ
कुछ फासला ही सही
पर सामने तो हो
सब कुछ लुटा के पाया है तुमको
कहीं बिछड़ न जाओ
पर तुम मुझसे बिछडोगे कैसे
तब मैं खुद से जुदा हो जाऊँगा
धडकनों के बिना शायद कुछ पल मैं जी भी लूं
लेकिन तुम्हारे बिना...
तुम्हारे बिना पल भर में मर जाऊँगा

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