Friday, April 30, 2010

सौ सीढियाँ

सौ सीढियाँ
हूँ चढ़ चुका
पर शीर्ष से अभी भी
बहुत नीचे हूँ
ये तो महज़ एक पड़ाव है
एक चौराहा
जहां से एक नया सफ़र
शुरू होगा
मंज़िल की बात तो छोडो
आगे कौन-सा रास्ता चुनना है
ये भी नहीं मालूम
फिर भी मेरा सफ़र जारी है
और शायद मेरी राह
सही ही है
क्योंकि ज़िन्दगी की मंज़िल
आखिरकार सफ़र ही तो है

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