Friday, April 30, 2010
तुमने कभी देखा है
तुमने कभी देखा है
अपनी आँखों को
मेरी आँखों के आईने में
वो बोलती हैं, हँसती है
चमकती है
जैसे दूर कहीं अँधेरे में
दो दीये झिलमिला रहे हों
जिनकी चमक से मुझमें उजाला है
मैंने देखा है
वो बाहें खोल बुलाती है
खुद में डूबा लेने को
सागर से भी ज्यादा गहराई में
समां लेने को
तुम्हारी आँखों में क्या है
ये शायद तुम भी नहीं जानती
जानना चाहोगी
आना
देखना कभी अपनी आँखों को
मेरी आँखों के आईने में
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