लरजते होंठों से
तुमने जब भी कुछ कहा
वो अफसाना
ज़िन्दगी का फलसफा बन गया
जैसे
ईंट-ईंट जुड़कर ईमारत बनती है
लफ्ज़-लफ्ज़ गढ़कर इबारत बनती है
तुम्हारे एहसास ने
वैसे ही
मेरी बदहाल शख्सियत को
एक भरपूर आकार दे दिया
एक पनाह को अब तक
भटकता था यहाँ वहां
साए में आ तुम्हारे
बदन आराम पा गया
एक बूँद को तरसती थी वो तल्ख़ रूह जो
तर कर दे जो जहाँ को
उसे वो प्यार दे दिया
Wednesday, April 28, 2010
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