Monday, April 12, 2010

मैं समझ नहीं पा रहा हूँ

मैं समझ नहीं पा रहा हूँ
ये सब कुछ क्या हो रहा है
क्यों मुश्किलें कुकुरमुत्ते-सी बढ़ रही हैं
क्यों मेरा खुद से नियंत्रण खोता जा रहा है
उम्र कच्ची, आशाएं वयस्कता की
बोझ अपनों के सपनों का ढोते हुए
अब तक तो चला
पर अब असहाय होता जा रहा हूँ
मंझधार में मैं
और दूर है किनारा

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